आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Sunday, April 25, 2010

जो नहीं करना चाहिए वो कर रहे हैं और जो करना चाहिए उससे बच रहे हैं।

इन्द्र ने अपने वज्र से वृत्तासुर की एक भुजा काट दी। तब वृत्तासुर ने इंद्र की ठोड़ी और ऐरावत पर परिघ से प्रहार किया जिससे इंद्र के हाथ से वज्र गिर गया। फिर वृत्तासुर के कहने से इंद्र ने वज्र को उठा लिया। तथा उसकी प्रशंसा भी की। हमारे मन में अच्छी बातें भी हैं, बुरी बातें भी हैं। इन्द्र को ज्ञान भी देना है, भगवान का भजन भी करना है, वृत्रासुर युद्ध भी करना है। ऐसे ही हमारा दिमाग़ है। घरवाली को गाली भी दे दो और फिर उसको प्यार भी कर लो। बच्चे को डाँट भी दो, फिर उसको प्यार भी कर लो। अपने आपको चाहते हैं कि रोग भी नहीं हो और स्वाद भी कर रहे हैं। चाहते हैं कि सुगर नहीं बढ़ जाए और रघा सेठ की चमचम भी चल रही हैं। रघा सेठ की चमचम भी खाए और सुगर भी नही बढ़े, तो ये बात कैसे चलेगी? यही झगड़ा है। जो नहीं करना चाहिए वो कर रहे हैं और जो करना चाहिए उससे बच रहे हैं। यही गड़बड़ है सब। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक। बचपन में माँ बाप मना करते हैं, उसी को करते हैं। जवानी में बीबी मना करे उसी को करते हैं और बुढ़ापे में बेटा नाती मना करते हैं उसे ही करना। पूरी जिन्दगी बदतर ही बना रहे हैं। बताया है कि जो कवच विश्वरूप का बताया हुआ था उससे अपनी रक्षा की और वृत्रासुर के पेट की एक-एक आँत को काट दिया है। मन में जो गन्दी-गन्दी बातें हैं, उनको मनन की हुई कुशाग्र बुद्धि के द्वारा दृढ़ता से निर्ममता पूर्वक काट दे, वह होता है-साधु। पेट को फाड़ कर बाहर निकले। शचि ने बृहस्पति को ढूंढ़ निकाला। बृहस्पति माने जो बड़ी बुद्धि के स्वामी हैं, सुलझी हुई बुद्धि के स्वामी हैं। शास्त्रों को कहना बहुत बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है शास्त्रों की बातों को समझना। भागवत की कथा तो एक बच्चा भी कह लेगा। लेकिन भागवत की कथा को समझा कर कहने वाला है बृहस्पति। भागवत की कथा तो सात-सात साल की बच्चियाँ भी पढ़ दें। जिन पर रोटी खाना नहीं आता वो लड़के-लड़कियाँ कथा पढ़ रहे हैं। तो कथा को समझा कौन सकता है? बात समझने की है और समझाने की है। समझदार लोग ही कर सकते हैं। समझदार लोगों से ही कर सकते हैं। समझदार लोगों से ही कथा कहलवानी चाहिए गधे-घोड़ों से नहीं कहलवानी चाहिए।

हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे।

हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे॥

Tuesday, April 20, 2010

कल्याण हमारे अपनी तरफ ध्यान देने से होगा

आप जिसको पढ़ते हैं, उसी का तो ज्ञान होता है। जिस पर ध्यान देते हैं, उसी का ही ज्ञान होता है। अपनी ओर ध्यान देने की बात है। हम अपने पर कभी ध्यान नहीं देते। कभी स्त्री पर, कभी बेटी पर, कभी भाई पर-कभी किसी पर। ये सब भी हमारे जीवन के लिए जरूरी हैं लेकिन कल्याण हमें अपनी तरफ देखने से होगा। पत्नी की तरफ देखने से घर चलेगा, देखना चाहिएऋ बच्चों की तरफ देखने से परिवार चलेगा, देखना चाहिएऋ समाज की तरफ ध्यान देने से जीवन बेहतर होगा, देखना चाहिए। लेकिन कल्याण हमारे अपनी तरफ ध्यान देने से होगा, अपने भीतर जो भरा हुआ है, उस पर ध्यान देने से होगा कल्याण। है ना, समझ में आ रही न बात? स्कूल पर ध्यान दोगे, स्कूल का ज्ञान होगाऋ खेत पर ध्यान दोगे, खेत का ज्ञान होगा, बिजनेस पर ध्यान दोगे, बिजनेस का ज्ञान होगा। तुमने अपने पर ध्यान दिया है कभी? बुरा मत मानना। अब तक नहीं दिया तो कोई बात नहीं। लेकिन अब गलती नहीं होनी चाहिए। चौबीस घण्टे में कभी न कभी ध्यान दिया करो, ध्यान किया करो-अच्छा रहेगा। और जरूरी नहीं है कि ध्यान करने के लिए तुम पद्मासन लगाकर बैठा। चारपाई में पड़े हुए भी ध्यान दे सकते हो। पंखे के नीचे बैठे हुए हैं आराम से सोफे पर बैठकर ध्यान दे सकते हैं। हमारे भीतर क्या है? उसको देखना। मेरे भीतर क्या गलत है, क्या सही है उसे देखो। मैं उस आदमी की बुराई करता हूँ कि वो बीड़ी पीता है लेकिन मैं तो सिगरेट पीता हूँ। तो क्या सिगरेट बीड़ी से बढ़िया है। मैं कहता हूँ दूसरा आदमी बीयर पीता है, पर मैं तो ठर्रा पीता हूँ। ऐसे करके देखना कि जिसकी तू बुराई कर रहा है वो ज्+यादा कुकर्मी है कि तू ज्+यादा कुकर्मी है। ऐसे तुलना करना, अच्छा। ये जरूर करना।

हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे। हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे॥

Monday, April 19, 2010

आएगा जब तू संतों के द्वार...............


तू इधर जो निकले, तेरे मिट जाऐं सारे अंधेरे,

तू नहीं अकेला, सब मिल के हैं यहाँ जुटे रे।

सन्तों की महफिल में रह, फिर ना भटक पाएगा॥

सुन अभिमानी...

जीवन सँवर जाएगा, सुन अभिमानी।

आएगा जब तू संतों के द्वार...............

जानता नहीं है, सारी दुनियाँ है मतलब का फेरा,

कोई ना किसी का, ये जीवन है जोगी का फेरा।

क्या तेरा, क्या मेरा? अमरत को पा जाएगा॥

सुन अभिमानी.... जीवन सँवर जाएगा, सुन अभिमानी।

आएगा जब तू संतों के द्वार.................

हंस वर्ण है तेरा, क्यूँ चलता है कागा की चालें,

धीर सिन्धु तज के, क्यूँ पकड़े बबूलों की डालें।

भूल नहीं, कबूल यही हरे रुद्र पा जाएगा॥

सुन अभिमानी.........

आएगा जब तू संतों के द्वार महक उठेगा तेरा सब संसार

जीवन सुधर जाएगा, सुन अभिमानी॥

Saturday, April 17, 2010

पाप से घबराए नहीं।

तो ये सब प्रकार की बाते इसमें है। ये घमण्ड नहीं करना चाहिए कि हम तो ध्यान करते हैं, दान करते हैं, भजन करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं। हम तो पवित्र हैं, शुद्ध हैं। पता नहीं तुम्हारे भीतर क्या दबा है, तुम्हें पता है? आदमी कहता है मैं तो नीच हूँ, पापी हूँ। नहीं यह भी गलत है। मन को छोटा नहीं करना है। पता नहीं तुम्हारे भीतर कितने जन्मों के पुण्य दबे पड़े हैं? जैसे अजामिल के दबे पड़े थे। तो जो आदमी कह रहा है कि हम पापी हैं वो भी गलत है और जो कह रहा है कि हम धर्मात्मा हैं वह भी गलत है। पता नहीं कि भीतर क्या-क्या दबा पड़ा है। इसलिए पुण्य का घमण्ड नहीं करें और पाप से घबराए नहीं।

आएगा जब तू संतों के द्वार,

महक उठेगा तेरा सब संसार।

जीवन सँवर जाएगा, सुन अभिमानी॥

Wednesday, April 14, 2010

चित्तरूपी भूमि में जन्मों-जन्मों के पाप-पुण्य रूपी संस्कार पड़े हुए हैं।

एक तरफ दैत्यों की सेना और एक तरफ देवताओं की। नर्मदा के किनारे भयंकर देवासुर संग्राम शुरू हो गया। परीक्षित! ये शूर सिंह देश का चित्रकेतु नामक राजा था। इसके एक बेटा हुआ था, एक करोड़ रानियों में और सौत रानियों ने उस बच्चे को मार दिया था। फिर उस जीवात्मा को उपदेश से वैराग्य हुआ और उसने संकर्षण का भक्ति से विमान प्राप्त किया लेकिन पार्वती जी के श्राप से ये असुर बना। तो वृत्रासुर ये हमारा चित्त है। इसमें जन्मों-जन्मों के संचित कर्म भरे पड़े हैं, पुण्य भी हैं और पाप भी हैं। इसको अवचेतन कहते हैं। हमारे इस मन में, जिनको हम जानते भी नहीं, बड़े-बड़े पाप भरे हैं और बड़े-बड़े पुण्य भरे हैं। जैसे कि इस जमीन में दुनियाँ भर के बीज हैं, पर जिन बीजों को बरसात में उगना है वे बरसात में ही उगेंगे, कितना भी पानी दो, नहीं उपजेंगे। और सड़ेंगे-गलेंगे भी नहीं। वक्+त आने पर ही उपजेंगे। इसी तरह हमारी चित्तरूपी भूमि में जन्मों-जन्मों के पाप-पुण्य रूपी संस्कार पड़े हुए हैं। जब मौसम आता है, तब कभी पाप आ जाता है, कभी पुण्य आ जाता है और यह बड़े-बड़े साधकों को नष्ट और भ्रष्ट कर देता है। बहुत सावधानी की जरूरत है, बहुत मनन की जरूरत है।

सकल पदारथ हैं जग माहीं। करम हीन नर पावत नाहीं॥

Thursday, April 8, 2010

सब कुछ मिला है, आपके भण्डार से गुरु।


रिक्त लौटा है न कोई, आपके इस द्वार से तो।

आत्म-बल टूटे न मेरा, प्रार्थना है ये गुरु जी।

आत्म-सुख सन्तोष पाने, मैं यहाँ पर आ गई हूँ॥

दिव्य अभिनव ज्योति पाकर धन्य हो गयी हूँ॥

सब समय, सब कुछ मिला है, आपके भण्डार से गुरु।

क्यों रुके हम? साधना के, क्षेत्र में बढ़ने से आगे।

सत्य, शिव, सुन्दर सभी तो, मैं यहाँ पर पा गई हूँ॥

दिव्य अभिनव ज्योति पाकर धन्य हो गयी हूँ॥

प्रस्तुति : अंजलि शर्मा अलीगढ

Tuesday, April 6, 2010

दिव्य अभिनव ज्योति पाकर धन्य हो गयी हूँ॥


गुरु द्वार पर अब तो मैं आ गई हूँ।

दिव्य अभिनव ज्योति पाकर धन्य हो गयी हूँ॥

कामना मेरी यही है, गुरु कृपा मुझ पर बनी रह।

चिर अमां की रात में भी, ज्योति पूनम सी बनी रह।

आपके चरणों में गुरु जी, स्वयं अर्पित हो गई हूँ॥

दिव्य अभिनव ज्योति पाकर धन्य हो गयी हूँ॥

ज्ञान गंगा में नहा कर, जी उठे हैं प्राण मेरे।

त्याग-तप-निष्ठा सभी तो, आपने सिखला दिए हैं।

कुछ नहीं है कामना बस, आपके दर आ गई हूँ॥

दिव्य अभिनव ज्योति पाकर धन्य हो गयी हूँ॥

प्रस्तुति : अंजलि शर्मा अलीगढ

Friday, April 2, 2010

अच्छे आचार-विचार और संस्कार नहीं है वह मनुष्य कहलाने के लायक नहीं

गुरुदेव ने यहाँ प्रकट कर दिया कि मनुष्य चाहे कितना भी पढ़ा लिखा हो लेकिन जब तक उसमें अच्छे आचार-विचार और संस्कार नहीं है वह मनुष्य कहलाने के लायक नहीं। इसलिए हमें अपना मन संयम पूर्वक अच्छे कर्मों में लगाना चाहिए, अपनी संगति और आचार-विचार शु( रखते हुए विनम्र रहना चाहिए, कभी भी गालियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि जैसे एक मंत्र हमारे कल्याण के लिए पर्याप्त होता है, वैसे ही एक गाली हमारे आध्यात्मिक मार्ग को अवरु( करने के लिए काफी होती है। अपने पवित्र आचार और विचारों को द्रढ़ता देने के लिए अपने सामने श्र(ा से युक्त होकर एक आदर्श रखना चाहिए, जिससे कि जीवन के प्रत्येक मार्ग में उस आदर्श को सामने रखकर सही और गलत में फर्क करते हुए आगे बढ़ सकें। लेकिन यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा कि आदर्श कोई फिल्मी अभिनेता या अभिनेत्री नहीं वरन्‌ हमारे देश की महान विभूतियाँ जैसे- राम, कृष्ण, महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई और भी ऐसी ही महान हस्तियाँ हैं, जिन्होंने ने देश और समाज केलिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, जिन्हें हम पथ प्रदर्शक के रूप में अपना आदर्श बना सकते हैं। आओ अब हम दृढ़ संकल्प ले कि हम संस्कारी बनेंगे, अपने पूज्यनीय माता-पिता, गुरुजन व सभी बड़ों को सम्मान और बड़प्पन देंगे चाहे उनसे सुनने को गाली ही क्यों न मिले अर्थात्‌ सद्गुणी बनकर ही रहेंगे। रुद्र कृपा में सबको संस्कारित होने के लिए दृढ़ता और हौसला मिले........।