इन्द्र ने अपने वज्र से वृत्तासुर की एक भुजा काट दी। तब वृत्तासुर ने इंद्र की ठोड़ी और ऐरावत पर परिघ से प्रहार किया जिससे इंद्र के हाथ से वज्र गिर गया। फिर वृत्तासुर के कहने से इंद्र ने वज्र को उठा लिया। तथा उसकी प्रशंसा भी की। हमारे मन में अच्छी बातें भी हैं, बुरी बातें भी हैं। इन्द्र को ज्ञान भी देना है, भगवान का भजन भी करना है, वृत्रासुर युद्ध भी करना है। ऐसे ही हमारा दिमाग़ है। घरवाली को गाली भी दे दो और फिर उसको प्यार भी कर लो। बच्चे को डाँट भी दो, फिर उसको प्यार भी कर लो। अपने आपको चाहते हैं कि रोग भी नहीं हो और स्वाद भी कर रहे हैं। चाहते हैं कि सुगर नहीं बढ़ जाए और रघा सेठ की चमचम भी चल रही हैं। रघा सेठ की चमचम भी खाए और सुगर भी नही बढ़े, तो ये बात कैसे चलेगी? यही झगड़ा है। जो नहीं करना चाहिए वो कर रहे हैं और जो करना चाहिए उससे बच रहे हैं। यही गड़बड़ है सब। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक। बचपन में माँ बाप मना करते हैं, उसी को करते हैं। जवानी में बीबी मना करे उसी को करते हैं और बुढ़ापे में बेटा नाती मना करते हैं उसे ही करना। पूरी जिन्दगी बदतर ही बना रहे हैं। बताया है कि जो कवच विश्वरूप का बताया हुआ था उससे अपनी रक्षा की और वृत्रासुर के पेट की एक-एक आँत को काट दिया है। मन में जो गन्दी-गन्दी बातें हैं, उनको मनन की हुई कुशाग्र बुद्धि के द्वारा दृढ़ता से निर्ममता पूर्वक काट दे, वह होता है-साधु। पेट को फाड़ कर बाहर निकले। शचि ने बृहस्पति को ढूंढ़ निकाला। बृहस्पति माने जो बड़ी बुद्धि के स्वामी हैं, सुलझी हुई बुद्धि के स्वामी हैं। शास्त्रों को कहना बहुत बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है शास्त्रों की बातों को समझना। भागवत की कथा तो एक बच्चा भी कह लेगा। लेकिन भागवत की कथा को समझा कर कहने वाला है बृहस्पति। भागवत की कथा तो सात-सात साल की बच्चियाँ भी पढ़ दें। जिन पर रोटी खाना नहीं आता वो लड़के-लड़कियाँ कथा पढ़ रहे हैं। तो कथा को समझा कौन सकता है? बात समझने की है और समझाने की है। समझदार लोग ही कर सकते हैं। समझदार लोगों से ही कर सकते हैं। समझदार लोगों से ही कथा कहलवानी चाहिए गधे-घोड़ों से नहीं कहलवानी चाहिए।
हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे॥