आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Wednesday, May 6, 2009

धर्म युद्ध के मायने ......

भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को युद्ध करने के लिए न केवल प्रेरित किया वरन तब तक उसका पीछा न छोड़ा तब तक कि उसने अपने गांडीव की प्रतंचा न चढ़ा ली। भगवान श्री राम ने भी रावण को युद्ध में परास्त कर विभीषण का राजतिलक किया और सीता को वापस प्राप्त किया। इससे पूर्व भी भगवान शिव द्वारा अनेकानेक युद्धों में अपने गणों को भेजने के प्रमाण मिलते हैं। भारत में ही बुद्ध और जैन मतों के प्रवर्तकों ने किसी भी प्रकार की हिंसा का निषेध किया। बुद्ध ने चीन और जापान में वहां के निवासियों को समुराई और कुंगफू जैसी युद्धोपयोगी कलाओं को सिखाया। सिंख धर्म के अंतिम गुरु ने भी सिखों को युद्ध कौशल में न केवल पारंगत किया वरन युद्ध के लिए प्रेरित किया और उनको यु(ोपयोगी परिधान धारण कराए। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मुहम्मद साहब ने तो स्वयं ही अनेक युद्धों में भाग लिया और जेहाद करने की आज्ञा दी। जेहाद को खुदा का पैगाम बताया और फर्ज में शुमार किया। आज इन्हीं आधारों को लेकर दुनिया में हिंसा का बोलबाला हो रहा है। धर्मयुद्ध के नाम पर स्वार्थी लोग अपने हैवानी मंसूबों को पूरा करने के लिए आतंकवाद फैला रहे हैं। स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है कि समझदार लोग यह जानते हुए भी कि यह सब गलत हो रहा है चुप्पी साधे बैठे हैं। क्रमशः कल भी ......

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