वाणी जब कठोर हो जाए, दम्भ-द्वेष-पाखण्ड छुड़ाए॥
शिष्य पे गुरू की करुणा भारी, भक्त सदा रहे आभारी॥
जापर कृपा रुद्र की होई, सो उसको भय नाहिं कोई॥
मोह माया के फंद काट दें, मन के पंच विकार छाँट दें।
सारे जग का गुरू आधार, निराकार हो या साकार ॥
वाणी जब कठोर हो जाए, दम्भ-द्वेष-पाखण्ड छुड़ाए॥
शिष्य पे गुरू की करुणा भारी, भक्त सदा रहे आभारी॥
जापर कृपा रुद्र की होई, सो उसको भय नाहिं कोई॥
मोह माया के फंद काट दें, मन के पंच विकार छाँट दें।
सारे जग का गुरू आधार, निराकार हो या साकार ॥
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