आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Thursday, August 14, 2008

ज्ञान का महत्त्व शिक्षा से बहुत ऊंचा है

ज्ञान शब्द अपने आप में परिपूर्ण है। संसार में अगर चारों ओर गहरी दृष्टि से देखा जाए तो यह संसार ज्ञान का समुद्र है। मानव चाहे तो इसमें गोता (डुबकी ) लगाए और ज्ञान प्राप्त कर ले। जो जितनी गहरी डुबकी लगाता है, वह उतना ही ज्ञान प्राप्त कर सकता है और गहरी डुबकी लगाने के लिए लम्बी साँस रोकने की आवश्यकता होती है। बस यही रहस्य जीवन में इस संसार में रहकर ज्ञान प्राप्त करने का है, कि जो जितनी मेहनत करेगा वह उतना ही सफल होगा। पर यह ज्ञान चीज क्या है और हमें प्राप्त कहाँ से होता है? ज्ञान कितने प्रकार का होता है अथवा ज्ञान का प्रयोग किस तरह होता है, यह अपने आपमें महत्वपूर्ण है। ज्ञान अगर न होता तो मानव, मानव न होकर क्या होता?.................शायद जानवर भी ना होता क्योंकि जानवर भी अपने मतलब का ज्ञान रखते हैं। जब से खुदा ने संसार की रचना की साथ-साथ ज्ञान भी दिया। मानव की इच्छाओं के साथ-साथ ज्ञान का महत्व बढ़ता गया। ज्ञान की कोई सीमा नहीं है और ना ही ज्ञान प्राप्त करने की कोई आयु आँकी गई है। ज्ञान हर व्यक्ति को प्राप्त भी नहीं होता, केवल किताबें पढ़ लेना या डिग्रियाँ प्राप्त कर लेना ज्ञान नहीं है।

ज्ञान का महत्व शिक्षा के स्तर से बहुत ऊँचा है। ज्ञान मानव की पूरी ज़िन्दगी को ही बदल कर रख देता है, उसके सोचने समझने का ढंग ही बदल जाता है, ज्ञान वह शक्ति है जिसके द्वारा मानव सात परदों के पीछे छिपे रहस्य को भी पा लेता है, ज्ञान के द्वारा ही मानव ने अपने असतित्व की क्रिया को समझा। मानव जिस तरह वजूद (अस्तित्व) में आता है, वह एक बहुत ही बदतरीन (कलुषित) हालत होती है। क़ुरआन में अल्लाह ने ज्ञान और मानव के अस्तित्व के बारे में जगह-जगह बात की है और बताया है कि मैंने ही तुमको पैदा किया और मैं ही तुम्हें ज्ञान देता हूँ। सूरह अल अलक़ ० (ब्ींचजमत ९६ फनतंद) "पढ़ो अपने रब के नाम के साथ जिसने पैदा किया, जमे हुए लोथड़े से मानव की संरचना, पढ़ो और तुम्हारा रब बड़ा करीम (करम ÷मेहरबानी' करने वाला) है, जिसने कलम के जरिए (द्वारा) से इल्म (ज्ञान) सिखाया, इंसान (मानव) को वह ज्ञान दिया जिसे वह नहीं जानता था''................................. यह अल्लाह का बड़ा करम है कि उस हक़ीर तरीन (निम्नतम) हालत से इब्तदा (प्रारंभ) करके उसने मानव को ज्ञानी बनाया जो मखलूक़ात की बुलन्द तरीन सिफ़त (जीवीयों का सर्वश्रेष्ठ गुण) है, और केवल ज्ञानी ही नहीं बनाया बल्कि उसको क़लम के प्रयोग से लिखने की कला बताई जो बड़े पैमाने पर ज्ञान की अशाअत (प्रसार) तरक्क़ी और पीढ़ियों द्वारा उसकी सुरक्षा एवं उन्नति का जरिया बना। अगर वह (अल्लाह) निवीन द्वारा मानव को क़लम और किताबत (लिपि) की कला का यह ज्ञान न देता तो मानव की इलमी क़ाबलियत (ज्ञानपरक योग्यता) ठिठुर कर रह जाती और उसके फलने, फूलने, फैलने और एक पीढ़ी का ज्ञान दूसरी पीढ़ी तक पहुँचने और आगे ज्+यादा तरक्की करते चले जाने का अवसर ही न मिलता। वास्तव में मानव बेइलम (अज्ञानी) था उसे जो कुछ भी ज्ञान प्राप्त हुआ। अल्लाह के देने से प्राप्त हुआ, उसी ने जिस मरहले (चरण) पर मानव के लिए ज्ञान के जो द्वार खोलने चाहे वह उस पर खुलते चले गए। जिन-जिन वस्तुओं को भी मानव अपनी इलमी दर्याफ़त (ज्ञानी खोज) समझता है वास्तव में वह पहले उसके ज्ञान में न थी। अल्लाहताला ने जब चाहा उनका ज्ञान उसे दिया, बिना इसके कि मानव यह महसूस (प्रतीत) करता कि यह ज्ञान उसे कौन दे रहा है। ज्ञान के द्वारा ही मानव ने बड़ी-बड़ी खोज की, वह ज+मीन के नीचे, आकाश के ऊपर और समुद्र की तह तक पहुँच सका। ज्ञान ही हमें आत्मा, परमात्मा पर विश्वास करना सिखाता है, मरना (मौत) और फ़िर जीना, हमारे अच्छे बुरे कर्मों का फ़ल मिलना, यह सब हमें शिक्षा से प्राप्त होता है। परंतु इन पर विश्वास ज्ञान द्वारा ही होता है। ज्ञान के द्वारा ही मानव चाँद पर पहुँचा, और ज्ञान द्वारा ही मानव भगवान, ईश्वर या ख़ुदा तक पहुँचता है, शर्त यही है कि ज्ञान किस प्रकार का है और उसका प्रयोग किस तरह किया जाता है। यूँ तो आज के संसार में हर व्यक्ति ज्ञानी है पर जो ज्ञान मानवता के काम आए और ईश्वर, ख़ुदा या भगवान जो ज्ञान देता है वही शुद्ध ज्ञान है।

हजरत अली (क।) का वक्तव्य है कि जिस व्यक्ति ने मुझे एक शब्द भी पढ़ा दिया मैं उसका दास हूँ। वह चाहे तो मुझे आज+ाद कर दे या बेच दे।

इमाम शाफ़ई (रह।) का प्रवचन है कि जो व्यक्ति उदासीनता और संतोष के साथ ज्ञान प्राप्त करना चाहे वह कदापि सफल नहीं हो सकता। केवल वह व्यक्ति सफल हो सकता है जो विनम्रता और विपन्नता के साथ ज्ञान प्राप्त करे।

बुखारी शरीफ़ में मुजाहिद (रह।) द्वारा उल्लिखित है कि जो व्यक्ति पढ़ने में लज्जा अथवा दंभ करे वह कदापि ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।

प्रस्तुतकर्त्ता : इज़हार उल हक अलीगढ

2 comments:

Ashish Khandelwal said...

बिल्कुल सटीक लिखा है आपने..

Anonymous said...

really adami gyan ke karan hi best hai