आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Thursday, August 28, 2008

इतनी कृपा कर


दाता दयाल तू इतनी कृपा कर

------ कि जब मुझ पर तेरी अनुकम्पा बरसे

***** तो मैं इतराऊँ नहीं।

-------और जब मेरे गुनाहों का फल मुझे मिले

****** तो मैं घबराऊँ नहीं.

1 comment:

Anonymous said...

amen!