मानवीय शरीर में पाँच इन्द्रियाँ पायी जाती हैं जिसके द्वारा मनुष्य इस संसार में अपने ज्ञान को अर्जित करता है जिसका प्रयोग वह इस संसार में करता है। ज्ञान से ही समस्त मानव जगत का तथा स्वयं का कल्याण हो सकता है अन्यथा इसका गलत प्रयोग भी हो सकता है। पवित्र शास्त्र बाइबल में ज्ञान का उद्गम स्वयं परमेश्वर हैं। भजन संहिता ९२ः१० "परमेश्वर मनुष्य को ज्ञान सिखाता है। भजन १९ः१-२ में पाते हैं कि परमेश्वर प्रदत्त सृष्टि (सम्पूर्ण ब्रह्मांड) परमेश्वर के ज्ञान को बताती है। परमेश्वर का वचन
बाइबल भी ज्ञान का अभूतपूर्व उद्गम है। ज्ञान भिन्न-भिन्न प्रकारों में सम्पूर्ण जगत् में पाया जाता है, जिसकी दो प्रमुख धाराऐं हैं: भौतिक ज्ञान एवं अलौकिक या आध्यात्मिक ज्ञान। भौतिक ज्ञान मनुष्य स्वयं अर्जित करता है, जिसमें यह आवश्यक नहीं है कि वह श्रेष्ठ एवं सत्य तथा वास्तविक मानव कल्याण हेतु हो क्योंकि इसमें स्वार्थ एवम् घमंड पाया जाता है। आध्यात्मिक ज्ञान का स्त्रोत स्वयं परमेश्वर है जिसका अर्जन मानव अपनी भौतिक सामर्थ्य एवं स्वकर्मों से नहीं कर सकता अर्थात् यह ज्ञान परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा प्राप्त होता है जिसमें ईश्वरीय सत्य पाया जाता है और ईश्वरीय ज्ञान में स्वतंत्र करने एवं छुटकारे की क्षमता पायी जाती है। परमेश्वर का सत्य ज्ञान इस संसार में पँचमहाभूतों
में दृष्टिगोचर होता है, जिन्हें हम मानवीय आँखों तथा पंच इंद्रियों द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। आकाश, जल, वायु, अग्नि तथा पृथ्वी हमारे वातावरण का अभिन्न अंग है जो परमेश्वर के अनुग्रहकारी ज्ञान को विस्तृत आधार पर प्रगट करते हैं। परमेश्वर अदृश्य हैं वहीं समस्त ब्रह्मांड का कर्त्ता है तथा समस्त वस्तुएँ उसमें निहित हैं। परमेश्वर का अनंत उद्धार एवं छुटकारा जो सम्पूर्ण मानव जाति एवं सृष्टि हेतु है, स्वयं प्रभु यीशु मसीह के देहधारण ;प्दबंतदंजपवदद्ध में प्रगट है। संतयूहन्ना का सुसमाचार का प्रथम अध्याय इस बात को प्रमाणित करता है।'' आदि में वचन (शब्द) था........................................... उसमें ज्योति थी..................... उसने हमारे बीच में निवास किया अर्थात् ठहर गया और मानव जाति का उद्धारकर्त्ता बन गया (यूहन्ना१ः१-१४, बाइबल)। ज्ञान का मूल्य सोने से श्रेष्ठ है (नीति वचन ८ः१०) यह हमारी शक्ति को बढ़ाता है। महर्षि यशायाह कहते हैं कि "ज्ञान मनुष्य को नाश होने से बचाता है तथा स्थिरता प्रदान करता है।'' सत्य ज्ञान जो स्वतंत्र करता है, वह परमेश्वर की ओर से है परंतु जब उसमें मिलावट कर दी जाती है तब वह पतन का कारण बन जाता है। मनुष्य का पापी स्वभाव ज्ञान को मिटा तथा दबा देता है। मनुष्य का अधर्म सत्य को ढाँकने की कोशिश करता है और सृष्टि को देखकर भी परमेश्वर के अनंत छुटकारे को समझ नहीं पाता। उदाहरणस्वरूप सृष्टि की घटना में प्रथम मानव (आदम-हव्वा) ने अपने ज्ञान का गलत उपयोग कर परमेश्वर की आज्ञा की अवहेलना द्वारा "भले एवं बुरे के ज्ञान'' नामक वृक्ष के फल को चख लिया जो उनके जीवन में विनाश एवं श्राप लेकर आया। प्रिय मित्रों हमें हमेशा ऐसे ज्ञान की खोज में रहना चाहिये जो सत्य एवं छुटकारा प्रदान करता है। अधिक ज्ञान कभी-कभी पतन एवं विनाश की ओर ले जाता है यदि उसका समुचित प्रयोग न किया जाये।
प्रस्तुति : रहव् संतोष पाण्डेय क्रिस्ट चर्च अलीगढ
1 comment:
आध्यात्मिक ज्ञान का स्त्रोत स्वयं परमेश्वर है जिसका अर्जन मानव अपनी भौतिक सामर्थ्य एवं स्वकर्मों से नहीं कर सकता अर्थात् यह ज्ञान परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा प्राप्त होता है जिसमें ईश्वरीय सत्य पाया जाता है.......
Rev. Father,pls tell me how to be worthy of Gods grace 2 get true knowledge
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