आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Sunday, October 3, 2010

दिमांग के कपड़े उतारना सीख जाओ..........

वहां के लिए तुम्हें अपने कपड़े उतारने होंगे। सारे कपड़े उतार दो सारे। जो शरीर पर कपड़े पहने हो ये भी उतार दो, दिमांग के कपड़े भी उतार दो। दिमांग के कपड़े उतारना सीख जाओगे, तो उनकी शरण में पहुँचकर अपनी जिन्दगी का जो उद्देश्य है उसको पा लोगे। लेकिन हम कपड़े उतारने के लिए तैयार नहीं होते, क्योंकि जब से ये हमारी जिन्दगीयाँ शुरू हुई हैं, तब से हम २१ वीं शदी में आये तब तक हमने कपड़े को पहनना, कपड़े को पकड़ना, कपड़े का कपड़े का फैशन, यही हमारी जिन्दगी की एक नियति बन गयी है। दिमांग में सारे के सारे कपड़ों के दलदल को भर लिया है। ये नहीं चलेगा। जब तक ये दिमाग के कपड़े नहीं उतरेंगे, अपने जीवन के लक्ष्य को नहीं पा सकोगे। तुमने सुना था कथा में, भगवान के ध्यान के लिए गोपियाँ जाया करती थीं, स्नान करने के लिए। तो उसमें चीरहरण का प्रसंग आता है कि गोपियों ने कपड़े उतार दिये और भगवान श्री उनके कपड़े ले गए। उन्होंने श्री कृष्ण से कपड़े मांगे तो श्री कृष्ण ने कहा, ÷÷मेरे पास में आओ।'' वो बात ऐसी नहीं है, जो उन्होंने शरीर के कपड़े उतारे थे, बात समझने की है। उन्होंने दिमांग के कपड़े उतारे थे। और दिमांग के कपड़े उतारना, यही जिन्दगी का एक सबसे फर्स्ट स्टैप पहला कदम होता है।