आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Tuesday, November 24, 2009

पलकों का परदा नहीं है तो मन्दिर नहीं जाऐं।

प्रातः काल उठि के रघुनाथा।

मात, पिता, गुरू नावहिं माथा॥

इस प्रकार शौच व स्नान करके शुद्ध पवित्र रहना चाहिए। फिर पंचमहायज्ञ किए बिना भोजन करे तो कृमि भोजन नामक निकृष्ट नर्क में कीड़ा बनना पड़ता है, परीक्षित। इसलिए माता, पिता, गुरू की सेवा करने के पश्चात जहाँ भोजन करे वहाँ नहा धोकर शुद्ध होकर या फिर घुटने तक पाँव धोए, कुहनी तक हाथ धोकर, कुल्ला करें, मुँह धोकर पोंछ कर पालती मारकर पूरव या उत्तर की ओर मुँह करके बैठना चाहिए। मुसलमान भाई हो तो काबे की तरफ मुँह करके बैठना चाहिए। भोजन करें सिर बांध करके नहीं करें, भजन करे तो सिर खुला नहीं रख कर करें। भजन करें मंदिर में जाए तो सिर बाँधकर जाए। आँखों को पलकों से ढक कर जाऐं। आँखों पर पलकों का परदा नहीं है तो मन्दिर नहीं जाऐं। सिर को ढक कर जाए नहीं तो मन्दिर नहीं जाए। बेशर्मों के लिए बेपर्दाओं के लिए मन्दिर नहीं बने।

हरे रामा/ हरे रामा/ रामा रामा हरे हरे।

हरे कृष्णा/ हरे कृष्णा/ कृष्णा कृष्णा हरे हरे॥

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