आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, November 7, 2009

आत्मा अपरिणामी है?

नहिं जानत ताहि देउ जनायी।
जानत तुमहिं तुमहिं होइ जायी।
तो जड़ भरत जी ने राजा से कहा कि भैया बता मैं तेरी किस प्रकार सेवा करूं। लेकिन इतनी बात जरूर है कि, जो तू कह रहा है वह शरीर के लिए है और शरीर के अभिमानी के लिए है, आत्मा के लिए नहीं है। इतना सुनते ही उस राजा ने सोचा कि ये तो कोई शूद्र नहीं है, सेवक नहीं है। ये तो काई ज्ञानी पुरुष है और ज्ञानी पुरुष इस कदर दुःखी हो गया तो नाश हो जाएगा।
राम विमुख अस हाल तुम्हारा। रहा न कोउ कुल रोवन हारा॥
डोली से उतरा और झुक गया भरत जी के चरणों में। भरत जी ने अपना परिचय दिया, कि हे राजन मैं भी एक समय तेरे जैसा ही राजा था और किस प्रकार इस स्थिति को प्राप्त हुआ हूं। तब उसने भरत जी के चरण पकड़ लिए। कहा कि महाराज आत्मा अपरिणामी है? चार्वाक कहता है कि आत्मा नाम की कोई चीज नहीं है। भौतिकवादी लोग कहते हैं कि जब भौतिक चीजें मिल जाती हैं तो अपने आप उनमें reaction शुरू हो जाता है। चार्वाक कहते हैं कि ये भौतिक शक्तियां पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु जब मिलती हैं तो अपने आप प्राण शक्ति बन जाती है और क्रिया हो जाती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि इलैक्ट्रान, प्रोटोन और न्यूट्रोन संयुक्त शक्तियां होती हैं। जब तक ये संयुक्त शक्तियां रहती हैं प्रकृति का क्रम चलता रहता है। चलो ये चार शक्तियां हैं, ये अपने आप में हैं या किसी खाली स्थान में हैं। ये जो space है, वो क्या है? अगर space नहीं होगा तो कोइ क्रिया हो जाएगी? इसलिए वेदांत कहता है आकाश। आकाश से भी शूक्ष्म है यह आत्मा। तो जिसमें ये संयुक्त शक्तियां हैं, वह आकाश है और जिससे इनमें गति है वह चेतन। भरत जी कह रहे हैं- यही बात है बेटा। तुम कहते हो कि नदपजमक वितबमे हैं, ये संयुक्त होने पर अपने आप क्रियाशील होते हैं। पर अगर ये अपने आप क्रियाशील होते हैं, तो ये जड़ हैं कि चेतन हैं? जड़ हैं तो मर क्यूं जाते हैं? चेतन हैं तो इनमें ह्रास क्यों होता है। ये जड़ हैं, लेकिन इनमें चेतन का संग है, चेतन की प्रेरणा है। अभिन्न निमित्त उपादान कारण हैं वह परमात्मा, यह वेदान्त कहता है, डंके की चोट।

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