आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Monday, August 3, 2009

मुझे अपने नूपुरों की भांति अपने पीछे चलने दो,

हे राधिके!

मदन महीपति कनकदंड रुचि केशर कुसुम विकासे,

मिलित शिली मुख पाटलि पटलकृत स्मर तूण विलासे॥

कुंजवन में नागकेशर फूल रही है, प्रतीत होता है कि मनोभव ने स्वर्ण मुकुट धारण किया है। पाटलिक के पुष्पों पर भ्रमर गुंजन कर रहे हैं तथा कामदेव का तूण शब्द हो रहा है। ऐसे वासंती वातावरण में इस निकुंज वन में श्री राधा जी श्री कृष्ण जी विनोद करते हुए मुस्कराकर बोलेः-

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