आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Thursday, August 6, 2009

राधा कृष्ण का संवाद

कर कमलेन करोमि चरण महमा गमितासि विदूरम्‌।

क्षणमुप कुरु शयनोपरि मामिवनू पुरमनुगति शूरम्‌॥

अर्थात्‌:- हे सुन्दरी! अनेक प्रकार की विनती करके मैंने तुम्हें इस जगह बुलाया है, इसलिए थोड़े क्षणों के लिए मैं तुम्हारे चरणों को सेवा करूंगा अर्थात्‌ दवाऊंगा। हे राधे! मैं तुम्हारा सेवक, तुमसे विनती करता हूँ कि मुझे नूपुरों की भांति स्वीकारते हुए, इस अत्यन्त कोमल, पुष्प पल्लवों युक्त शैया पर ग्रहण करो और मुझे अपने नूपुरों की भांति अपने पीछे चलने दो।

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