आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Wednesday, August 12, 2009

शीतल जल से पूरित घड़े को रखने से विरहताप अवश्य दूर होता है।

बदन सुधानिधि गलितममृतमिव रचय वचन मनुकूलम्‌,

विरह मिवापन यामि पयोधर रोधक मुरसि दुकूलम॥३॥

प्रिय परिरंभण रमसवलि तमिव पुलकित मन्य दुरापम्‌।

मृदुरस कुच कलशं विनिवेशय शोषयमन सिज तापम्‌॥४॥

अर्थात : हे राधिके! अपने चन्द्रमुख से अमृत वचनों को कहकर, मेरे कानों को तृप्त करो, और मैं विरही उद्वेग से आकुल तुम्हारे अंग वस्त्र (आंगिया) को तुम्हारे वक्षस्थल से हटाऊंगा। हे भामिनी! हे राधे! तुम अब मेरे वक्ष पर अपने युगल स्थूल एवं कड़े स्तनों को रख मेरे साथ कामभोग में आसक्त हो जाओ और मेरी छाती को शीतल कर दो क्योंकि शीतल जल से पूरित घड़े को रखने से विरहताप अवश्य दूर होता है।

2 comments:

Anonymous said...

Who have written this this explanation .
If you do not know any thing then do not explain any thing and do not put on internet .

Anonymous said...

This exxplanation is totally worng....this is the product of sin and mean mind...

Er. Raj
National Institute of Technology
Allabad
India
211004