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Sunday, July 26, 2009

गीत गोविन्द का हिन्दी रूपांतरण

और हे सखी!

उन्मद मदन मनोरथ पथिक वधूजन जनित विलापे,

अलिकुल संकुल कुसुम समूह निराकुल वकुल कलापे॥३॥

मृगमद सौरभ रमसवंशवद नवदल माल तमाले,

युवजन हृदय विदारण मनसिज लख रुचि किंशुक जाले॥४॥

अर्थात्‌- इस बसंत ऋतू से समस्त संसार आनन्दित होता है। श्री कृष्ण नारायण स्वरूप जगत के कर्ता- बसंत में दुर्जनादि उदालम्मों से आलिप्त कहे जाते हैं। नारायण प्रोषिताओं की पीड़ा जानते हुए भी इनके विरह जनित विलाप की बसंत के रूप में अनदेखी करते हैं। ये पथिक वधुऐं कामदेव से पीड़ित हुयी जब वकुल पुष्प पर भ्रमर को बैठे देखती है, तो और भी पीड़ित हो जाती हैं। तमाल वृक्षों की कस्तूरी सुगन्ध निकुंज वन में व्याप्त है, जो पलाश पुष्पों से वेष्टित स्वर्ण आभायुक्त हो रहा है, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कामाग्नि से दहन हृदयों को और विदीर्ण करने के लिए निज नखों को और भी तीव्र एवं विस्तृत कर रहा है।

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