आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Sunday, July 5, 2009

रुद्रवानी

तेरौ अचला चल चल डौले, कहा करि लेगी लगोंटिया रे।
बाहिर ओढ़ै भीतर छोड़ै। बाहिर जोड़ै भीतर तोड़ै॥
अन्तर पट नां खोलै, कहा करि लेगी लगोंटिया रे॥ १॥
बाहिर साधू, भीतर स्वादू। बाहिर ब्रह्म, ज्ञान मन व्यादू॥
काम क्रोध झक झोरै, कहा करि लेगी लगोंटिया रे॥ २॥
बाहिर कौ कछु काम न आवै। राम के नाम हराम कमावै॥
ये तराजू न तौले, कहा करि लेगी लगोंटिया रे॥ ३॥
अन्त समय जो भरियौ सो आबै। चतुराई छूटै फिरि पछि तावे॥
काल करम जब घोलै, कहा करि लेगी लगोंटिया रे॥ ४॥
मन कौ संयम अचला होवै। प्रज्ञा बुद्धि लंगोंटी होबै॥
'रुद्र' प्रमाणित बोलै, कहा करि लेगी लगोंटिया रे।
तेरौ अचला..............................................

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