आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Friday, July 10, 2009

मंत्र विज्ञान विशुद्ध वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है।

मंत्र एक वैज्ञानिक विचारधारा है, एक सत्य है, जिसमे कल्पना के लिए कोई स्थान नहीं है तथा न ही यह रूढ़िवादिता है। अपितु मंत्र विज्ञान विशुद्ध वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। यह धन दे कर खरीदी जा सकने वाली वस्तु नहीं है। क्यों कि यह तो एक सिद्धि है, सूक्ष्म वैज्ञानिक विचारधारा है, सचेतन शास्त्र है। इसमें न तो आधुनिक मशीनरी सी जटिलता है और न ही अधिभौतिकता, अपितु यह तो एक गहन तकनीक है जिसको समझने के लिए आस्था और संयम बनाए रखकर आध्यात्मिक सागर में उतरना होता है। आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार मंत्र शक्ति मुख्यतः शब्दों की ध्वनि और लय पर आधारित है। मंत्रों में ध्वनि और लय का विशेष महत्व है। जो व्यक्ति एक निश्चित लय के साथ मंत्र का उच्चारण करता है, वह उस मंत्र की शक्ति से अवश्य लाभान्वित होता है। लेकिन एक सीधे रूप में उस मंत्र का मात्र पठन कर लिया जाए तो उसका प्रभाव नहीं होगा, क्यों कि उस शब्द और वाक्य के साथ लय का संयोग नहीं है। किसी शब्द की मूल ध्वनि वह है जिससे उसका निश्चित प्रभाव पड़ सके। मंत्रों में शब्द अथवा उसका अर्थ अपने आप में अधिक महत्व नहीं रखते, अपितु उसकी ध्वनि विशेष महत्वपूर्ण है। आंतरिक विद्युत धारा विज्ञान के अनुसार जिस भी शब्द का उच्चारण हम लोग करते हैं, वह इस ब्रह्मांड में तैरने लगता है। उदाहरण के लिए एक रेडियो स्टेशन पर किसी भी गीत की पंक्ति का अंश बोला जाता है तो वह उसी समय वायुमंडल में फैल जाता है तथा विश्व के किसी भी देश, किसी भी कोने में श्रोता यदि चाहे तो उसके रेडियो के माध्यम से उस गीत की पंक्ति का अंश सुन सकता है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि रेडियो में सूई उसी फ्रीक्वैंसी पर लगाने की जानकारी हो। इस प्रकार ग्राहक और ग्राह्य का आपस में पूर्ण संपर्क आवश्यक है, उसी प्रकार मंत्रों का उच्चारण किया जाता है तो मंत्र उच्चारण से भी एक विशिष्ट ध्वनि कंपन बनता है जो कि संपूर्ण वायु मंडल में व्याप्त हो जाता है। इसके साथ ही आंतरिक विद्युत भी तरंगों में निहित रहती है। यह आंतरिक विद्युत, जो शब्द उच्चारण से उत्पन्ना तरंगों में निहित रहती है, शब्द की लहरों को व्यक्ति विशेष या संबंधित देवता, ग्रह की दिशा विशेष की ओर भेजती है। अब प्रश्न यह उठता है कि यह आन्तरिक विद्युत किस प्रकार उत्पन्ना होती है? यह बात वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा मान ली गई है कि ध्यान,मनन,चिन्तन आदि करते समय जब व्यक्ति एकाग्र चित्त होता है, उस अवस्था में रसायनिक क्रियायों के फलस्वरूप शरीर में विद्युत जैसी एक धारा प्रवाहित होती है (आंतरिक विद्युत) तथा मस्तिष्क से विशेष प्रकार का विकिरण उत्पन्ना होता है। इसे आप मानसिक विद्युत कह सकते हैं। यही मानसिक विद्युत (अल्फा तरंगें) मंत्रों के उच्चारण करने पर निकलने वाली ध्वनि के साथ गमन कर, दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करती है या इच्छित कार्य संपादन में सहायक सिद्ध होती है। यह मानसिक विद्युत (उर्जा) भूयोजित न हो जाए, इसीलिए मंत्र जाप करते समय भूमि पर कंबल, चटाई, कुशा इत्यादि के आसन का उपयोग किया जाता है। मानव की भौतिक इच्छाओं की लालसा से प्रेरित होकर हमारे आर्य ऋषियों नें, ध्वनि समायोजन कर के, भाषा को मंत्रों का स्वरूप प्रदान किया था, जिसे कि आज हम रूढ़िवादिता मान बैठे हैं।

प्रस्तुतु : दीके शर्मा

3 comments:

रंजना said...

अपने रूचि के विषय पर इतना सारगर्भित सुन्दर आलेख बिलकुल आनंदित कर गया.....बड़े ही सटीक ढंग से इसमें तथ्य को रखा है आपने.....मैंने इसे अपने पास सहेज लिया है...

अध्यात्म को व्यर्थ मानने वालों के भ्रम खंडन का यह महत प्रयत्न अति प्रशंशनीय है...मेरा आभार स्वीकारें...

Unknown said...

अति उत्तम

NL Sukhwani said...

यह अधूरा और काट-छांट कर तैयार किया गया आलेख है। बरसों पहले (यह 1970 के आसपास की बात है।) जयपुर से छपने वाली एक पत्रिका “ज्योतिष मार्तण्ड” (D -19 गणेश मार्ग, बापू नगर, जयपुर) में प्रकाशित यह लेख मूल रूप से मोहन आचार्य एम॰ ए॰ (अर्थ॰, हिन्दी) द्वारा लिखा गया था।
प॰ देवधर पाण्डेय इसके प्रकाशक थे जिनसे उस जमाने में मैं एक बार मिला भी था।
उस पत्रिका में पृष्ठ संख्या 105 से 110 पर यह लेख छपा था तथा मेरे पास यह सम्पूर्ण लेख आज भी उपलब्ध है।