२. परमेश्वर से मिलने का निश्चित स्थानः- मानव को एक ऐसे स्थान की आवश्यकता है जहाँ वह एकांत अनुभव करें और किसी की दखलंदाजी न हो। अपनी बात (प्रार्थना) कर सकें तथा परमेश्वर की बात सुन सकें। बाइबल में एकांत विषयक कई उदाहरण हैं, जहाँ परमेश्वर से मिलाप हेतु मनुष्य बार जाता है। पु. नि. में दानिरमेल नबी ने अपने घर की उपरौठी कोठरी में एक स्थान बनाया था जहाँ वह येरुशलेम की ओर मुख करके दिन में तीन बार प्रातः, दोपहर एवं संध्या को ध्यान-मनन करते थे। स्वयं प्रभु यीशु मसीह एकांत, स्थान में पहाड़ी पर कोलाहल से दूर जाकर ध्यान-मनन (प्रार्थना) किया करते थे।३। इब्राहिम प्रतिदिन ऐसा करते थेः- ध्यान-मनन का अभिन्न अंग है उसकी निरंतरता। परमेश्वर से निरंतर वार्तालाप एवं परमेश्वर की बातों को सुनना, जिसमें " मौन'' का एक महत्वपूर्ण स्थान है। निरंतर सुनना अत्यंत आवश्यक है, और यह शांत रहकर ही जहाँ परमेश्वर की इच्छा। संम्भव है जानने का अवसर प्राप्त होता है।४. वह परमेश्वर के सम्मुख खड़ा रहता और प्रभु के बोलने की प्रतीक्षा करताः- ध्यान-मनन में खड़े रहना, घुटने टेकना या एक विशेष स्थिति में आसन करना अत्यंत आवश्यक है। भौतिक रूप से सुस्ती दूर होती है, साथ आत्मिक बल भी प्राप्त होता है। दूसरा पहलू यह है कि इसमें धीरज एवं संयम का होना दर्शाता है जो ध्यान-मनन का अभिन्न एवं आवश्यक अंग है।मसीही ध्यान-मनन हेतु आवश्यक औज+ारः- भौतिक एवं नश्वर संसार में प्रत्येक कार्य हेतु संबंधित औज+ारों का होना अत्यंत आवश्यक है उसी प्रकार परमेश्वर से संबंध हेतु आत्मिक औज+ारों का होना भी आवश्यक है। पवित्र धर्म ग्रंथ में नये नियम कि इफिसियों की पत्री के सोपान छः में यह पाये जाते हैं: सत्य, धार्मिकता, मेलमिलाप, विश्वास, उ(ार ;मुक्तिद्ध एवं परमेश्वर का वचन ;बाइबलद्ध। ध्यान-मनन के समय पवित्र बाइबिल के साथ साथ पेन, नोटबुक, एक गद्दी, फर्श या चटाई का होना अत्यंत आवश्यक है। मसीही ध्यान-मनन मशीनी न हो जाये अतः भौतिक रूप से खान-पान, सोना इत्यादि तथा आत्मिक रूप से पवित्र जीवन, स्वस्थ्य आचार-व्यवहार एवं कठोर अनुशासन का होना अत्यंत आवश्यक है, तभी वास्तविक मसीही ध्यान-मनन हो सकता है।
Saturday, September 26, 2009
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