बादल होते हैं, मौसम बनता है, हमारे भीतर भावना के बादल बनेंगे और वो बादल क्या करते हैं? पता है। आसमान को ढ़क लेते हैं फिर आसमान क्या करता है, पता है उसके भीतर जो भी है वो बादलों का देकर वर्षा देता है। तो उससे तुम्हारे भीतर छिपा हुआ जो सतगुरु हो वो तुम्हारे कल्याण के लिए जितनी भी अमृत की छींटें हैं, जितनी भी बारिस है, जितनी भी उसके पास है, उसको देगा, भर देगा उसको। आज तक कोई भी ज्ञान को पैदा करने वाला नहीं हुआ। ज्ञान तो अनन्त है, अखण्ड़ हैं, शाश्वत है, उसके कोई टुकड़े नहीं हो सकते, उसका कोई अभाव नहीं हो सकता।
"नासतोविद्यतेभावः नाभावोविद्यते सतः॥''
असत्य वस्तु की कोई सत्ता नहीं, सत्य वस्तु का कोई अभाव नहीं। ज्ञान तो सब में है, उसका अभाव नहीं है। कोई विद्वान है, कोई गुरु है, कोई संत है, समझदार है, ये सब क्यों है? ये ऐसे ही हैं जैसे पानी समुद्र में है। पानी के भीतर मछली प्यासी है। ऐसा नहीं है मछली को पानी नहीं मिल रहा है, जब कि पानी के बिना मछली हो ही नहीं सकती है। ज्ञान के बिना कोई जीवन हो ही नहीं सकता है। ज्ञान चेतना है, जीवन भी चेतना है। अरे जहाँ जिन्दगी है, वहाँ ज्ञान जरूर होगा और लेकिन नहीं दीख रहा है, तो बजह क्या हो सकती है?
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