गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म , तस्मै श्री गुरुवे नमः॥
उपरोक्त पंक्तियां हमारे धर्मशास्त्रों में गुरु की महिमा का वर्णन करती हैं। गुरु को ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश जो क्रमशः चराचर जगत की उत्पत्ति कारक, पालनहार एवं संघारक शक्तियां हैं, तीनों रूपों में माना गया है। और फिर इसी श्लोक में गुरु को साक्षात परब्रह्म भी माना गया है तथा उनका नमन किया गया है। सामान्य व्यवहार में गुरु का अर्थ शिक्षक से लगाया जाता है। लेकिन कबीर ने गुरु को ईश्वर से भी उंचा स्थान दिया है ।
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागों पाँव ।
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय॥
उपरोक्त दोहे में कबीर दास जी ने बताया कि गुरु और ईश्वर दोनों अगर एक साथ खड़े हों तो किसका नमन पहले करें अर्थात दोनों में अधिक पूज्यनीय कौन है। फिर इसी दोहे ही दूसरी पंक्ति में आपने स्पष्ट किया कि गुरु की ही बलिहारी है क्योंकि ईश्वर तक पहुंचाने वाला तो गुरु ही है। आखिर ऐसा क्या है गुरु में कि उसे ईश्वर से भी उपर का दर्जा दिया गया है। उपरोक्त दोहे से ही वैसे तो काफी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि ईश्वर को बताने वाला , उससे साक्षात्कार कराने वाला गुरु ही तो है। शाब्दिक दृष्टि से गुरु शब्द के दो अर्थ अधिक सटीक जान पड़ते हैं। गुरु शब्द 'गु' एवं 'रु' दो अक्षरों के युग्म से निर्मित होता है। 'गु' का अर्थ है अंधकार तथा 'रु' का अर्थ है प्रकाश की ओर। अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। अंधकार अज्ञानता का सूचक है और प्रकाश ज्ञान का।अर्थात वह जो अज्ञानता को हटाकर ज्ञान के प्रकाश का आलोक कर दे।
आध्यात्मिकता में तो यह सम्भव ही नहीं कि बिना गुरु की सहायता के कोई दो पग भी आगे बढ़ सके, हॉं, दो पग भटक सकता है। लेकिन लौकिक व्यवहार में भी हर किसी को जीवन के हर मोड़ पर किसी ऐसे की ज़रूरत होती है जो उसे सही मार्ग बताए। बालक नौ महीने मॉं के गर्भ में रहता है। वहॉं मॉं ही उसकी गुरु होती है जो बीज से बाल्य अवस्था में आने तक उसे वह सब कुछ सिखा देती है जिससे कि वह इस धरा पर आकर जी सके। क्या मॉं गर्भ काल में उसे बोलकर कुछ सुनाती है या उसे लैक्चर देती है ?नहीं ना। फिर भी वह सब कुछ सीख जाता है। क्योंकि वह उससे पूरी तरह से जुड़ा रहता है, लघु रूप में। उन नौ महीनों में वह जो सीखता है उतना तो अपने पूरे जीवन भर में नहीं सीख पाता। क्यों? इसके लिए हमें गुरु शब्द के दूसरे अर्थ पर ध्यान देना होगा। गुरु शब्द का अर्थ बड़ा भी है। बड़ा क्या है ?इसका कोई पैमाना नहीं है। बड़ा होना सापेक्षता पर आधारित है। हर कोई किसी से बड़ा है। अर्थात शिष्य जितना लघुरूप होता जाता है गरु उतना ही विशाल। मॉं के गर्भ में हम अपनी लघुता के कारण ही सीख पाते हैं।
सच ही कहा गया है :
सब धरती कागद करों ,लेखनी सब वनराय।
सात समुद्र की मसि करों ,गुरु गुन लिखा न जाए।।
5 comments:
very good attempt
God bless You.
are wao bahut badia. thora font ko aur sahi karo. lekhak ka photo de to aur achha lagrga.
guru is necessary indeed.
marveleous attempt
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