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Sunday, June 22, 2008

सेतुबंध रामेश्वरम(महाराज जी के भागवत वचनामृत से )

....................... आज लोग सेतुबंध रामेश्वरम के अस्तित्व को लेकर प्रश्न उठा रहे हैं। कहते हैं कि राम के होने का कोई सबूत नहीं है। रामेश्वरम के बनने का कोई सबूत नहीं है। आने वाली पीढ़ी जब ये पढ़ेगी या सुनेगी कि राम नहीं हुए सीता नहीं हुईं, राम रावण का युद्ध नहीं हुआ, धर्म और अधर्म के बीच होने वाले युद्ध को ही नकार दिया जाएगा और धर्म की विजय के लिए साक्ष्य माँगे जाएंगे, तो कोई धर्म को क्यों मानेगा? चरित्र की बात क्यों करेगा? कहेगा सब बेमानी है। राम को न मानने वाले किसी भी प्रकार से धार्मिक लोग नहीं हो सकते हैं। ये वधिक हैं, हत्यारे हैं, ये मवाली हैं। आज ये ताकतवर हो गए हैं। राम कमजोर हो गया है। कुकर्म मजबूत हो गया है, सुकर्म मजबूर हो गया है। राम को मानने वाले कमजोर हो गए हैं। स्वार्थ राम पर भारी पड़ रहा है। यदि राम को मानने वालों में ताकत हो तो राम को कौन मार सकता है? कौन राम के अस्तित्व को नकार सकता है? लेकिन राजन! कलियुग में राम के मानने वाले नहीं रहेंगे। इन वधिकों से धर्म की रक्षा तुम्हीं कर सकते हो। और जो राजा होकर राम की रक्षा नहीं कर सकता, धर्म की रक्षा नहीं कर सकता, उसका स्वयं ही नाश हो जाता है। क्योंकि धर्म पर ही यह ब्रह्माण्ड टिका हुआ है। धर्म से ही, ये धरती, ये सूरज, ये चाँद और ये तारे टिके हुए हैं। समुद्र अपने धर्म को छोड़ दे तो, ये दुनियाँ डूब जाएगी, आग अपने धर्म को छोड़ दे तो, ये दुनियाँ जल जाएगी। सूरज अपने धर्म को छोड़ दे तो, दुनियाँ में जीवन समाप्त हो जाएगा। धर्मो रक्षति रक्षितः धर्म के लिए जीना चाहिए, धर्म से जीना चाहिए, धर्मयुक्त जीना चाहिए।
धर्म से विरति, योग ते ज्ञाना। ज्ञान मोक्ष प्रद वेद बखाना॥
परीक्षित महाराज ने उस कलियुग का वध करने के लिए जब धनुष वाण उठाए तो वह उनकी शरण में आ गया। शरण में आए हुए का वध करने वाले का नाश होता है, ऐसा विचार कर परीक्षित महाराज ने कहा कि, "तू मेरे राज्य की सीमा से बाहर चला जा।'' अब कलियुग ने कहा कि महाराज आप तो समस्त भूमण्डल के राजा हैं। ऐसा कौन सा स्थान है जो आपके अधीन न हो। जब आपने मुझे जीवन दान दिया है तो रहने का स्थान भी दीजिए। मुझे ऐसा स्थान बता दीजिए जहाँ मैं रह भी सकूँ। कलियुग की प्रार्थना पर महाराज परीक्षित ने कहा कि मैं तुझे रहने के लिए चार स्थान देता हूँ- द्यूतं, पानं, स्त्रीं एवं सूया।
द्यूतं:- यानि जुआ। जहाँ भी जुआ होता है, वहीं कलियुग है। जो अपने बच्चों का जरा भी ध्यान रखता हो उसे जुए और जुआरी से दूर रहना चाहिए। क्योंकि जहाँ जुआ होता है वहाँ न धन रहता है, न कोई सम्बन्ध रहता है और न वहाँ धर्म रहता है। जुए की आदत में आदमी इतना खराब हो जाता है कि वह इसके लिए कुछ भी कर सकता है। इसलिए जुआ खेलने से दूर रहें।
पानं:-शराब तथा शराबी। तुम सोचते हो दिन भर काम करके थके हुऐ हैं थोड़ा सा पीलें तो, नींद अच्छी आ जाएगी, कोई बात नहीं है, तो क्या फर्क है इसमें। फिर इस के लिए आदमी कोई गलत काम भी करें? कोई किसी और की बात करने लगे कि भाई मेरा मन तो इस पर आ गया है। अगर ऐसा करुँगा तभी जी सकूँगा नहीं तो मर जाऊँगा। ये आदमी का बेजातपना है, कि शराब से नींद आ जाती है। शराब से नींद नहीं आती। नींद तो बेकार हो जाती है। रिश्ते बेकार हो जाते हैं और चरित्र तो उसमें होगा ही नहीं। जो शराब और शराबी में रहेगा वह क्लेश में रहेगा।
स्त्रियः-जिस घर में स्त्री लम्बरदार होती है वहाँ क्लेश रहता है। अनावश्यक क्लेश होता है। स्त्री को घर की मालकिन होना चाहिए पर घर के मामलों का मालिक तो उसका पति होना चाहिए। स्त्री को केवल घर तक रहना चाहिए। बाहर सुरक्षित नहीं है। बाहर के लिए बुद्धि नहीं है। बेरोजगारी इसीलिए बढ़ रही है कि लड़कों के लिए भी नौकरी नहीं है, तो लड़कियों को नौकरी देकर क्या संदेश जाएगा। नौकरी करने वाली किस बच्चे की माँ बनेगी? कैसे बहन बनेगी? कैसे बेटी बनेगी? कैसे पत्नी बनेगी? नौकरी करके तो कमाने का दिमाग़ बन गया उसका। प्यार और ममता का दिमाग़ तो खत्म हो गया। जहाँ स्त्रियाँ लम्बरदार हो वहाँ पर क्लेश रहता है। रावण की बहन थी शूर्पणखा थी, लम्बरदार थी, लन्का बर्बाद हो गई। कलियुग तुम वहाँ पर रहना जहाँ स्त्रियाँ लम्बरदार हों।
सूयाः- एक दूसरे की तरक्की को देखकर कुढ़ना। एक दूसरे को आगे बढ़ते देख कर खुश रहना वहाँ पर क्लेश नहीं रहता, पर जहाँ एक दूसरे की तरक्की को देखकर कुढ़ना हो वहाँ पर क्लेश रहेगा। तू वहाँ पर ही रहना। तो जुआ, शराब, स्त्री और सूया ये चार स्थान राजा परीक्षित ने कलियुग को रहने के लिए दे दिए।
फिर कलियुग ने परीक्षित से एक जगह और माँगी। तो परीक्षित ने उन्हें अनुमति दी कि सुवर्ण जहाँ हो वहाँ रहना। सुवर्णः-चमक। जिसकी आँखों में, दिमाग़ में चमक भर गई हो उसके चारों तरफ क्लेश रहेगा। जो दूसरे के चमकीले मकान को देख रहा है वह चैन से नहीं रह सकता है वह चोरी कर सकता है, डकैती डाल सकता है, अपहरण-हत्या कुछ भी करवा सकता है। किसी के धन सम्पत्ति, बहू-बेटी की चमक दिमाग़ में है, वह शान्ति से नहीं रहने देती है बर्बाद कर देती है। इसलिए दिमाग़ में जो चमक भर गई है वो शान्ति को छिन्न-भिन्न कर देती है।
महाराज परीक्षित का जो चमकीला मुकुट था, उसमें कलियुग प्रवेश कर गया। मुकुट कहते हैं बुद्धि को। बुद्धि में कलियुग आ जाता है तो जीवन बर्बाद हो जाता है। वहाँ से परीक्षित महाराज आगे गए तो हिरनों का पीछा करते शिकार करते हुए, उनको बहुत जोर की प्यास लगी तो उन्होंने सोचा चलो यहीं पर शमीक ऋषि का आश्रम हैं। वहीं पर चलूँगा, जल पियूँगा और फिर शाम को राजधानी के लिए चलूँगा। आश्रम में पहुँचे तो देखा शमीक ऋषि संध्या वन्दन कर रहे हैं। शमीक ऋषि ने उनका अभिवादन नहीं किया, वे तो प्रभु के वन्दन में लगे थे। राजा परीक्षित को बहुत क्रोध आया, क्योंकि दिमाग में चमक थी, कि राजा हूँ, महाराजा हूँ, पढ़ा लिखा हूँ । मैं इतना पढ़ा लिखा,मन्त्री हूँ, सुन्दर हूँ यह अन्धा कर देता है। आदमी यही सोचता है कि उसने मेरी इज्जत नहीं करी। मैं ऐसे खानदान का हूँ, ऐसे पद पर हूँ, वह अपने आप को समझता क्या है? अरे अपने घमंड में, बड़प्पन में वह किसी के बड़प्पन को नहीं समझता है। अरे, ठीक है, तुम बहुत पढ़े लिखे हो सुन्दर हो, पद वाले हो पर दूसरे को भी देखो वह भी तो कुछ है। बड़ा आदमी वही होता है जो दूसरे को सम्मान देता है। और जो दूसरे को सम्मान नहीं दे सकता वह सबसे घटिया आदमी होता है। जिस कुँऐ में पानी नहीं है वह किसको पानी पिलाएगा? और जिस कुँए में पानी है वह किसको प्यासा लौटाएगा? जो बड़ा है वह सबको बड़प्पन और सम्मान देगा और जो घटिया है, नीच है वही किसी को बड़प्पन और सम्मान नहीं देगा। "झूठ ही लेना, झूठ ही देना, झूठ ही भोजन, झूठ चबैना" जब हम अपना बड़प्पन दूसरे के ऊपर छोड़ें। हम बड़े कब हैं? जब दूसरे हमें बड़ा समझें तब। हम छोटे कब हैं? जब हम खुद को बड़ा समझें और दूसरे को कुछ ना समझें तब। जो लेना है वही दुनियाँ को दो। जो दुनियाँ को दोगे वही तुम्हें मिलेगा। यदि दुनियाँ को सम्मान दोगे तो तुम्हें मान-सम्मान मिलेगा और अगर दुनिया से सम्मान लोगे तो जो भी तुम्हारे पास है वह भी तुमसे छीन लिया जाएगा। दूसरे को नीचा समझने में आदमी समझता है कि मैं बड़ा हो गया और दूसरे को सम्मान देने में समझता है कि मैं नीचा हो गया। यही उल्टी बुद्धि है।
मरा हुआ साँप लटका दिया परीक्षित ने शमीक ऋषि के गले में। इस महात्मा ने मेरा सम्मान नहीं किया। फिर वे वहाँ से चले गए। वहाँ शमीक ऋषि का जो पुत्र था श्रृंगी, छोटा सा पाँच वर्ष का। उन्होंने देखा कि मेरे पिता के गले में साँप लटका कर जो उनका अपमान किया गया है। उन्होंने कौशिकी नदी का जल हाथ में लेकर श्राप दिया कि, "जिसने मेरे पिता के गले में मरा हुआ साँप लटकाया है, मैं श्राप देता हूँ कि सात दिन के भीतर वह तक्षक नाग द्वारा डसा जाएगा और मृत्यु को प्राप्त होगा।''

1 comment:

Anonymous said...

is par kaun kuchh kah sakta hai? Ek to Maharshi Vyas rachit bBhagwat vo bhi Maharajji ke shrimukh se nikli! kyaa suraj ko deepak dikhana hai?