फरवरी २०१६ का अंक विद्या की देवी मां सरस्वती को समर्पित है। वसंत का नाम सुनते ही मन मयूर नृत्य करने लगता है। खेत खलिहानों में जहां तक नजर जाती है, सरसों के पीले पुष्प धरा के सौंदर्य को अलौकिक बना देते हैं।
वसंत पतझड़ के बाद आता है। पतझड़ में पत्ते सूख कर डाली से प्रथक हो जाते हैं। वसंत के आगमन के साथ ही उन सूखे डंठलों पर नव कोंपलें आने लगती हैं। न गर्मी होती है, न सर्दी। सम मौसम। गरीब को भी आनंद और अमीर को भी आनंद। यानि की हर वर्ग को आनंद ही आनंद। कुछ ऐसा ही मादकता भरा, सौंदर्य से भरपूर पर्व है, वसंत पंचमी।
इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती का जन्मोत्सव भी है। श्वेत धवल वस्त्रों में एक हाथ में वीणा और दूसरे में ज्ञान का प्रतीक पुस्तक लिए मां सरस्वती कमल दल पर विराजित हैं। उनकी स्तुति कर कितने ही अज्ञानी, कालजयी रचना कर अमर हो गये। उन मां सरस्वती को वंदन।
इसी मास में मौनी अमावस्या का पावन पर्व है। संयोग से इस वर्ष मौनी अमावस्या सोमवार के दिन पड़ रही है। जिसकी वजह से इसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है। परमेश्वर की भाषा मौन है। संसार की समस्त भाषाएं और लिपियां हमारे भाव को परमेश्वर के समीप तक पहुंचाने का माध्यम हो सकती हैं, लेकिन उसे पाने की भाषा तो केवल मौन ही है। इस पर्व पर मन और वाणी से मौन रहकर हम परमेश्वर से एकत्व स्थापित कर सकते हैं। परमेश्वर से अपनी बात कहने और उसकी बतायी बातों को सुनने और समझने का पर्व है, मौनी अमावस्या।
बाजार के इस भयंकर युग में हर पर्व को उपहार बेचने और लेने देने के क्रम में विक्रत कर दिया है। ऐसा ही हुआ है, वेलेन्टाइन डे के साथ। डॉ. गांधी ने प्रस्तुत अंक में इस विषय पर व्यापक प्रकाश डाला है।
महाकालेश्वर का पूजन दिवस पर मैंने स्वयं का एक संस्मरण लिखा है, जो महाराज जी के साथ हुई यात्रा से जुड़ा है। यह एक अविस्मरणीय यात्रा थी। पृष्ठों की सीमा के कारण इसे संक्षिप्त रूप में ही प्रस्तुत किया है।
इस मास के अंक में हम आपसे वसंत के मौसम का लाभ उठाने की अपेक्षा करते हैं। वसंत के दो रूप हैं। एक ज्ञान की आराध्या का जन्मोत्सव तो दूसरा मदनोत्सव। अब आप कौन सा पक्ष पकड़ते हैं, यह आप पर निर्भर है। ज्ञान मार्ग से या आनंद मार्ग से, पहुंचना तो एक ही स्थान पर है। आओ कुछ ऐसा समन्वय करें कि भक्ति के आनंद में डूब ज्ञान गंगा में गोते लगाते हुए लक्ष्य की ओर चल पड़ें...... संजय भइया
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