इस अंक के साथ वर्तमान में सर्वाधिक प्रचलित अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार हम नव वर्ष में पदार्पण करेंगे। नव वर्ष सुधी पाठकों के जीवन में हर्ष और उल्लास से परिपूर्ण हो इस मंगल कामना के साथ पत्रिका परिवार की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं और महाराज जी की ओर से आशीर्वाद।
वैसे तो सबै भूमि गोपाल की, सब दिन एक समान। लेकिन जिस प्रकार हम लिखते समय कोमा और विराम लगाते हैं तथा पैरा बदलते हैं, उसी प्रकार दिन, मास और वर्ष का क्रम चलता है।
बदलता वर्ष सिंहावलोकन का समय देता है। गुजरी हुई साल में हम क्या कर सकते थे? क्या किया? जो करना चाहते थे, उसे क्यों नहीं कर पाए? ऐसे अनेकों प्रश्नों का सिंहावलोकन कर हम नये साल में नयी रणनीति बनाकर उन कामों को कर सकते हैं। पुरातन से सबक लेकर आगे की ओर बढ़ने का नाम ही जिंदगी है।
वर्ष के अंतिम दिनों में हुए एक अमानुषिक अत्याचार के विरोध में सड़कों पर उतरते जन सैलाब ने साफ संकेत दिए हैं कि हमें बहुत कुछ स्वयं को बदलने की आवश्यकता है। यह घटना वैसे तो कोई नयी घटना नहीं है। हर दिन हर स्थानीय अखबार में किसी न किसी स्थान पर समाज को शर्मशार करने वाली ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं। पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण तथा अपने सनातन दर्शन को पश्चिम के नजरिए से देखने की हमारी ललक ने हमें इस मोड़ पर खड़ा कर दिया है कि हम एक तरफ तो लिव इन रिलेशनशिप की वकालत करने लगते हैं और दूसरी ओर अरबी कबीलों के दण्ड विधान की।
क्यों हम विचार नहीं करते अपने सनातन मूल्यों की पुर्नस्थापना की जहां स्त्री को भोग की वस्तु नहीं वरन् देवी माना जाता है। अंधकार युग की कुछ घटनाओं को आधार मानकर क्यों हम अपने दर्शन से विमुख हो रहे हैं। क्यों हम संकीर्णता से नहीं निकल पा रहे हैं? क्यों हम नहीं स्वीकार करते कि हमारी संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन, वैज्ञानिक तथा शास्वत नियमों पर आधारित संस्कृति है। वह हमारे वेद ही हैं जो जगत के प्राकट्य की वैज्ञानिक अवधारणा प्रस्तुत करने में समर्थ हैं। हमारे वेदों में ही वसुधैव कुटुम्बुकम का भाव है। हमारे पूर्वजों ने ही आत्मा की निरंतरता जैसे जटिल प्रश्नों के उत्तर सहस्राब्दियों पहले प्रस्तुत कर दिए थे। हर प्रश्न का समाधान हमारी संस्कृति में है। आवश्यकता है, एक बार उसके सिंहावलोकन की। आओ इस नव वर्ष में पुराने से सीख लेकर आगे की ओर बढ़ें। अन्धानुकरण को त्याग विश्व को नयी राह दिखाएं................संजय भइया
No comments:
Post a Comment