दीपावली के पावन पर्व पर समस्त पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं। दीपावली का पर्व, पर्वों का समूह है तथा भिन्न भिन्न आधारों पर भिन्न भिन्न सम्प्रदायों द्वारा एक ही स्वरूप से मनाया जाने वाला त्यौहार है। दुनिया भर के लोग इस स्याह रात के तिमिर को दीप जलाकर तिरोहित करते हैं।
दुनिया के सभी धर्मों में अंधकार से प्रकाश की ओर चलने की बात कही गयी है। अंधकार का स्वामी शैतान माना जाता है और प्रकाश का गुरु। अंधकार झूठ का प्रतीक है और प्रकाश सत्य का। सार्वभौम जगतगुरु सूर्य अपने दैदीप्तमान प्रकाश के कारण ही सर्वत्र पूज्य है।
सूक्त वाक्य ÷तमसोमा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्ममा अमृतगमय' कहता है कि हमारी यात्रा अंधकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमरत्व की ओर होनी चाहिए। जब जन्म है तो मृत्यु निश्चित है। अतः अमरत्व तब तक सम्भव नहीं जब तक कि हम जन्म को प्राप्त न हों। और बार बार जन्म लेने से बचना तब तक सम्भव नहीं जब तक कि हम स्वयं पूर्ण प्रकाशित न हों। पूर्ण प्रकाशित होकर ही स्वयं को उस दिव्य प्रकाश में समा पाना सम्भव है।
दीपावली के पर्व पर हम केवल दरवाजों पर दीप ही नहीं जलाते वरन अपने घरों की सफाई भी करते हैं। हमारे घरों में जमे हुए कबाड़ को निकालकर इस दिन हम बाहर फैंक देते हैं। दीपावली की रात्रि में पूजन के उपरांत प्रातः पौ फटने से पहले हमारे घरों की माताएं सूप को पीटकर आवाज देती हैं कि लक्ष्मी का आगमन हो रहा है अतः दरिद्र तू चला जा।
कचरा निकलने पर ही मां लक्ष्मी घर में प्रवास करती हैं। दीप जलने से अंधकार भाग जाता है। यह व्यवस्था जिस प्रकार घर में है ठीक उसी प्रकार हमारे अंदर भी है। अंदर अगर पूवाग्रहों का कचरा भरा है तो मां लक्ष्मी कहां निवास करेंगी। पहले हमें अपने अंदर से कचरा निकालना होगा। यह कचरा है हमारे संस्कारों का। कई लोग कहते हैं कि ये संस्कार तो हमें विरासत में मिले हैं या कि हमने बड़े जतन से एकत्रित किए हैं, इन्हें कैसे निकाल दें। क्या घर में से जो कबाड़ निकाला है, वह भी जतन से ही एकत्रित किया था। हमें आगे बढ़ना है, प्रकाश लाना है तो एक दीप जलाना ही होगा.................................संजय भइया