बुद्धि को सुधारने की जरूरत नहीं है। गलत आदत को सुधारने की जरूरत नहीं है, केवल सुनाने की इच्छा को छोड़ दो तो तुम्हारे अन्दर कोई गलत आदत नहीं है। जो हमारे यहाँ ज्ञान है, वह श्रवण से आता है, सुनने से आता है। ज्ञान कहाँ से आता है? सुनने से। जब बच्चे को तुम स्कूल भेजते हैं, तो कॉलेज के सारे नियमों पर चलता है कि कैसे कपड़े होने चाहिए, कब आना चाहिए, कैसे बैठना चाहिए, सारे कानून को, सारे नियम को जब अपने ऊपर ओढ़ लेता है, तो उसी तरीके से जैसे मास्टर उसको पढ़ाते हैं, उनको जैसे सिखाते हैं, बैठना, बोलना, उसी तरीके से क्लास में करता है। और फिर उसके गुरु का, टीचर का दिया हुआ जो पूरा का पूरा ज्ञान है, उसको भीतर कर लेता है। कुछ नहीं करना है, गुरु को सुनने वाले बन जाओ, केवल सुनने वाले।
तुम कथा सुनते हो परीक्षित की। परीक्षित ने कुछ नहीं किया केवल सुना और मुक्त हो गया। सुनने से ही मोक्ष होगा। और सुनाने से ही आदमी गंवार होगा। सुनाने से ही आदमी कीबुद्धि के अन्दर जो कॉन्सन्ट्रेशन होता है, जो बुद्धि के अन्दर ऐकाग्रता होती है, जो दिल के अन्दर बहुत गहराईयाँ होती हैं, वो डिस्टर्व हो जाती हैं।
तुम कहोगे कि शुकदेव जी से तो परिक्षत ने सुना और उसका मोक्ष हो गया। शुक देव जी ने सुनाई? शुक देव जी ने नहीं सुनाई, जो घटना होती है उसे बताते जाते हैं, सुनाते नहीं हैं। शुक देव जी ने सुनाया नहीं। जो उनके अन्दर हो रहा था उसको बता देंगे, देखा ऐसा-ऐसा हुआ है, ऐसा-ऐसा होता है। ऐसा आदमी जब अपनी बात को कहता है तो उसमें खोया हुआ होता है। उसको सोचने की जरूरत नहीं है। शुक देव जी ने कुछ सोचा नहीं है, जो कुछ उनके अन्दर घटित होता रहता था, उसको बताते रहते थे। वही बात सबके अन्दर एक जैसी घटित होती है।
जरूरी नहीं है कि मेरे भीतर कुछ और, और तुम्हारे भीतर कुछ और, तीसरे के भीतर कुछ और हो। सब को भूख लगती है, सबको प्यास लगती है, सबको दर्द होता है, सबको दुःख होता है, तकलीफ होती है, सब एक जैसी चीज है, कोई अलग नहीं है, तो शुक देव जी के अन्दर जो घटित हो रहा था, उनके अन्दर जो चल रहा था, उसको परिक्षत को कह रहे थे। कहते-कहते चुप भी होगए, क्योंकि जहाँ दर्द और दिल दो होते हैं, तो बात होती है और जहाँ दिल ही बोल जाता है, दर्द ही दर्द रह जाता है, तो कौन किससे मिले। कथा बन्द हो गई।
भगवान शंकर पार्वती जी को कथा बता रहे हैं। प्रवचन नहीं कर रहे हैं, बता रहे हैं कि "पार्वती हनुमान जी लंका जलाकर के सीता जी को राम जी की खबर देकर के लौट कर के आए, भगवान के शरण में पहुँचे, दण्डवत किया, प्रणाम किया प्रभु के चरणों में। राम जी ने उनको आर्शीवाद दिया। शंकर जी बता रहे हैं- प्रभु कर पंकज कपि के दीशा, सुन कथा मगन गौरी सा। 'प्रभु कर पंकज कपि के दीशा' प्रभु के कर कमल हनुमान जी के सिर पर। 'सुन कथा मगन गौरी सा' कथा बन्द हो गई शंकर जी की समाधी लग गई। दर्द ही दर्द रह गया, दिल खो गया। दर्द क्या था?
भगवान शंकर राम जी के भक्त थे। और हनुमान जी शंकर जी तो बने राम जी की सेवा करी। भक्त को अपने भगवान की शरण मिल जाए। जो शिष्य अपने गुरु के लिए तड़पता है, उसे अपने गुरु की शरण मिल जाए, खतम हो गया सब कुछ, उसकी दौड़ खतम हो गई। एक नदी चल रही थी। बडे-बड़े पहाड़ों से जूझती हुई पेड़ों से जूझती हुई, और बड़े-बड़े ऊँचे नीचे रास्ते और ऊँचाईयों से जूझती हुई कहीं नहीं रुकती। बड़े-बड़े बांध बनाऐंगे नहीं रुकती, लेकिन जब समुद्र मिल गया, तब रुकेगी। जब गुरु मिले बात खतम हो गई, प्रभु मिले बात खतम हो गई, समुद्र मिला बात खतम हो गई।
भगवान कृष्ण कहते हैं कि "अर्जुन जब तक गढ्ढ़े मिलते हैं। डोलते रहते हैं। जब प्रभु मिलते हैं फिर कोई पाप नहीं रहता, फिर कुछ नहीं रहता। जब तक नींद नहीं आती है, तो बेचैन रहते हैं और जब नींद आ जाती है, तो कुछ करते हो? कुछ नहीं करते। फिर करना खतम हो जाता है, तो शुक देव जी ने कहा नहीं है, शंकर जी ने कहा नहीं है, तुलसीदास जी ने कहा नहीं है, संतों ने कोई प्रवचन नहीं दिया। जो हुआ है जो उनको पता है, देखा है ऐसा होगा, जो हो रहा है उसको कह रहा है वो सन्त है।
जिसके अन्दर हुआ नहीं उसको कह रहा है, वह कहना है उसमें तुम्हें कुछ मिले या नहीं मिले कोई जरूरी नहीं है। संत वो जिसके अन्दर कुछ घटित होता है, जिसके अन्दर वो चीज चल रही है, जिसके भीतर सारे के सारे अनुभव हैं तो शुक देव जी ने भी सुना। शंकर जी बता भी रहे हैं और सुन भी रहे हैं। शुक देव जी बता भी रहे हैं और सुन भी रहे हैं क्योंकि आनन्द ले रहे हैं पूरा। अगर कहने का आनन्द नहीं लेते, बताने का आनन्द नहीं लेते तो समाधी कैसे लग जाती। शुक देव जी, शंकर जी की समाधी कैसे लग जाती, आनन्द कैसे आता है।
दर्द कैसे आता है, भाव कैसे बनता है, जो कहने में धर्म है, वो कह नहीं रहा है। कहने में अहंकार आ रहा है। कितनी बढ़िया कथा कह रहा है। होई कहेगा मैंने ऐसा प्रवचन किया कि सुनने वाले लोग कन्नी काट गए, उंगली दबा गए ऐसा। खुद ही जो रास्ते से भटक जाऐं, खुद ही जिनकी बुद्धि उल्टी हो गई है, उसे क्या सुधार लेगा। तो इसलिए बात सबसे पहली है कि जब बच्चा स्कूल जाता है, तो स्कूल के क्या नियम हैं, सारे नियमों को अपने स्वभाव में ढाल ले। और मास्टर क्या कहते हैं, उसको सुने, तो गुरु शिष्य के भीतर उतर जाता है। जब सुनने की इच्छा हो जाती है। सुनने लायक हो जाता है, तो ज्ञान और बढ़ जाता है, जब नदी को समुद्र मिल जाता है, तो नदी पूरी हो जाती है। जब शब्दों को भाव मिल जाता है, तो शब्द बन जाते हैं।
तुम कथा सुनते हो परीक्षित की। परीक्षित ने कुछ नहीं किया केवल सुना और मुक्त हो गया। सुनने से ही मोक्ष होगा। और सुनाने से ही आदमी गंवार होगा। सुनाने से ही आदमी कीबुद्धि के अन्दर जो कॉन्सन्ट्रेशन होता है, जो बुद्धि के अन्दर ऐकाग्रता होती है, जो दिल के अन्दर बहुत गहराईयाँ होती हैं, वो डिस्टर्व हो जाती हैं।
तुम कहोगे कि शुकदेव जी से तो परिक्षत ने सुना और उसका मोक्ष हो गया। शुक देव जी ने सुनाई? शुक देव जी ने नहीं सुनाई, जो घटना होती है उसे बताते जाते हैं, सुनाते नहीं हैं। शुक देव जी ने सुनाया नहीं। जो उनके अन्दर हो रहा था उसको बता देंगे, देखा ऐसा-ऐसा हुआ है, ऐसा-ऐसा होता है। ऐसा आदमी जब अपनी बात को कहता है तो उसमें खोया हुआ होता है। उसको सोचने की जरूरत नहीं है। शुक देव जी ने कुछ सोचा नहीं है, जो कुछ उनके अन्दर घटित होता रहता था, उसको बताते रहते थे। वही बात सबके अन्दर एक जैसी घटित होती है।
जरूरी नहीं है कि मेरे भीतर कुछ और, और तुम्हारे भीतर कुछ और, तीसरे के भीतर कुछ और हो। सब को भूख लगती है, सबको प्यास लगती है, सबको दर्द होता है, सबको दुःख होता है, तकलीफ होती है, सब एक जैसी चीज है, कोई अलग नहीं है, तो शुक देव जी के अन्दर जो घटित हो रहा था, उनके अन्दर जो चल रहा था, उसको परिक्षत को कह रहे थे। कहते-कहते चुप भी होगए, क्योंकि जहाँ दर्द और दिल दो होते हैं, तो बात होती है और जहाँ दिल ही बोल जाता है, दर्द ही दर्द रह जाता है, तो कौन किससे मिले। कथा बन्द हो गई।
भगवान शंकर पार्वती जी को कथा बता रहे हैं। प्रवचन नहीं कर रहे हैं, बता रहे हैं कि "पार्वती हनुमान जी लंका जलाकर के सीता जी को राम जी की खबर देकर के लौट कर के आए, भगवान के शरण में पहुँचे, दण्डवत किया, प्रणाम किया प्रभु के चरणों में। राम जी ने उनको आर्शीवाद दिया। शंकर जी बता रहे हैं- प्रभु कर पंकज कपि के दीशा, सुन कथा मगन गौरी सा। 'प्रभु कर पंकज कपि के दीशा' प्रभु के कर कमल हनुमान जी के सिर पर। 'सुन कथा मगन गौरी सा' कथा बन्द हो गई शंकर जी की समाधी लग गई। दर्द ही दर्द रह गया, दिल खो गया। दर्द क्या था?
भगवान शंकर राम जी के भक्त थे। और हनुमान जी शंकर जी तो बने राम जी की सेवा करी। भक्त को अपने भगवान की शरण मिल जाए। जो शिष्य अपने गुरु के लिए तड़पता है, उसे अपने गुरु की शरण मिल जाए, खतम हो गया सब कुछ, उसकी दौड़ खतम हो गई। एक नदी चल रही थी। बडे-बड़े पहाड़ों से जूझती हुई पेड़ों से जूझती हुई, और बड़े-बड़े ऊँचे नीचे रास्ते और ऊँचाईयों से जूझती हुई कहीं नहीं रुकती। बड़े-बड़े बांध बनाऐंगे नहीं रुकती, लेकिन जब समुद्र मिल गया, तब रुकेगी। जब गुरु मिले बात खतम हो गई, प्रभु मिले बात खतम हो गई, समुद्र मिला बात खतम हो गई।
भगवान कृष्ण कहते हैं कि "अर्जुन जब तक गढ्ढ़े मिलते हैं। डोलते रहते हैं। जब प्रभु मिलते हैं फिर कोई पाप नहीं रहता, फिर कुछ नहीं रहता। जब तक नींद नहीं आती है, तो बेचैन रहते हैं और जब नींद आ जाती है, तो कुछ करते हो? कुछ नहीं करते। फिर करना खतम हो जाता है, तो शुक देव जी ने कहा नहीं है, शंकर जी ने कहा नहीं है, तुलसीदास जी ने कहा नहीं है, संतों ने कोई प्रवचन नहीं दिया। जो हुआ है जो उनको पता है, देखा है ऐसा होगा, जो हो रहा है उसको कह रहा है वो सन्त है।
जिसके अन्दर हुआ नहीं उसको कह रहा है, वह कहना है उसमें तुम्हें कुछ मिले या नहीं मिले कोई जरूरी नहीं है। संत वो जिसके अन्दर कुछ घटित होता है, जिसके अन्दर वो चीज चल रही है, जिसके भीतर सारे के सारे अनुभव हैं तो शुक देव जी ने भी सुना। शंकर जी बता भी रहे हैं और सुन भी रहे हैं। शुक देव जी बता भी रहे हैं और सुन भी रहे हैं क्योंकि आनन्द ले रहे हैं पूरा। अगर कहने का आनन्द नहीं लेते, बताने का आनन्द नहीं लेते तो समाधी कैसे लग जाती। शुक देव जी, शंकर जी की समाधी कैसे लग जाती, आनन्द कैसे आता है।
दर्द कैसे आता है, भाव कैसे बनता है, जो कहने में धर्म है, वो कह नहीं रहा है। कहने में अहंकार आ रहा है। कितनी बढ़िया कथा कह रहा है। होई कहेगा मैंने ऐसा प्रवचन किया कि सुनने वाले लोग कन्नी काट गए, उंगली दबा गए ऐसा। खुद ही जो रास्ते से भटक जाऐं, खुद ही जिनकी बुद्धि उल्टी हो गई है, उसे क्या सुधार लेगा। तो इसलिए बात सबसे पहली है कि जब बच्चा स्कूल जाता है, तो स्कूल के क्या नियम हैं, सारे नियमों को अपने स्वभाव में ढाल ले। और मास्टर क्या कहते हैं, उसको सुने, तो गुरु शिष्य के भीतर उतर जाता है। जब सुनने की इच्छा हो जाती है। सुनने लायक हो जाता है, तो ज्ञान और बढ़ जाता है, जब नदी को समुद्र मिल जाता है, तो नदी पूरी हो जाती है। जब शब्दों को भाव मिल जाता है, तो शब्द बन जाते हैं।