सौ प्रतिशत सत्य तो एक ब्रह्म ही है, बाकी सब मिथ्या है-परीक्षित। दुनियाँ में साढ़े छः अरब आदमी हैं। न ये प्रवृत्ति को जानते हैं न निवृत्ति को। इनका कल्याण कैसे होगा? एक अरब से ज्यादा हिन्दुस्तान में हैं। इनका कल्याण कैसे होगा? और एक अरब से ज्यादा चीन में हैं। ढ़ाई अरब से ज्यादा तो इन दो देशों में ही हो गए। न ये प्रवृत्त हो सकते हैं न निवृत्त हो सकते हैं तो क्या ये सबके सब जीवन मरण में पड़े रहेंगे। फिर सन्तों का क्या उपयोग रहेगा? सन्त तो नरक में जाते हुए और पाप और भोगों में फँसे हुए लोगों को उस आग से निकलने वाले होते हैं।
'परहित सरिस धरम नहिं भाई। परपीड़ा सम नहिं अधमाई॥''
महाराज कहने लगे, ''देख, परीक्षित जब तक चित्त में पड़े हुए तमोगुण और रजोगुण हैं तब तक यह मार्ग बन्द नहीं होगा। इसलिए मनुष्य को अपने चित्त को, अपने विचारों को, अपनी इन्द्रियों की प्रवृत्ति को और अपने शरीर की क्रियाओं को कर्मों को शुद्ध करना चाहिए। फिर वह कितना ही बड़ा पापी हो उसके लिए प्रायश्चित्त है। लोग कहते हैं पुण्य करोगे तो पाप कट जाऐंगे। नहीं, पुण्य करोगे पुण्य बनेगा, पाप करोगे पाप बनेगा। पुण्य से पाप नहीं कटेगा और पाप से पुण्य नहीं कटेंगे। प्रायश्चित्त से आदमी पाप से दूर होता है, पुण्य से भी दूर होता है-मुक्त हो जाता है। 'प्राय' माने 'दोबारा' 'चित्त' माने ÷करना' दोबारा उस गलत काम को नहीं करो- मन से, कर्म से वचन से बस। शराब की सील्ड बोतल को हजार वर्षों तक गंगाजी में रखो, तो क्या वह गंगाजली हो गई। ऐसे जिस आदमी का मन, वचन और कर्म पाप पूर्ण है तो फिर वह चाहे मन्दिर जाए, भजन करे, सत्संग जाए, तिलक-छापा लगाए, चुटिया बांधे, पुराण पढ़े, ये सब करने से कुछ नहीं होता। भीतर शराब है बाहर गंगाजल का लेबिल लगा दो, कृष्ण भगवान का फोटो लगा दो तो क्या शराब की बोतल सोमरस हो जाएगी? सवाल ही नहीं। तो इस ढोंग से क्या होगा? कोई नौटंकी थोडे+ ही है। नौटंकी का रोल तो अच्छा करना है, लेकिन जीवन को शुद्ध करने के लिए कोई कर्म नहीं करना है। उसके लिए तो ऐसा करना होगा, परीक्षित, कि उस शराब की बोतल को खाली करके, साफ शुद्ध कर लो फिर उसे शुद्ध करके उसमें गंगाजल भर लो। फिर चाहे गंगाजी में रखो, चाहे नहीं रखो। जिसके मन में धर्म है, ज्ञान है जिसने, पाप छोड़ दिया, वह फिर चाहे कहीं रहे कोई फर्क नहीं पड़ता। और जिस बोतल में शराब है उसे चाहे गंगा में रखो, मन्दिर में, मस्जि+द में रखो, मैया पर रखो, कहीं रखो शराब है- जहाँ रहेगी वहीं खराब करेगी। इसलिए तिलक, माला, छापा से कुछ नहीं होगा, परीक्षित।
''निर्मल मन जन सो मोहि पाता। माहि कपट छल छिद्र न भावा॥''