आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Tuesday, November 16, 2010

संत किसी भी रूप में मिल सकते हैं.......



कैसे पहचानोगे तुम? वो ही जब चाहेगा तभी तुम पहिचान पाओगे और नहीं चाहेगा तो तुम हजार किताबें पढ़ों, हजार चक्कर लगाओ नहीं पहिचान पाओगे। जिसके हाथ में बर्फ की सिल्ली है, तो वह आग की गर्मी क्या होती है कैसे जान पाऐगा? वो कहीं भी मिल सकते हैं, किसी भी रूप में मिल सकते हैं। संत मिल जाए तो, उसके कपड़ों पर मत जाना, उसके नखड़ों पर मत जाना, उसकी जगह पर मत जाना। तुम लोग ऐसी जगहों पर बहुत जाते हो। अगर मन्दिर में कोई बैठा है तो मान लेते हो कि कोई साधु ही होगा, कोई संत ही होगा। और तुम उसके पास जाते हो तो जो तुम्हारे हाथ हाथ मे है वो भी चला जाता है। तीर्थों में सोचते हो यहाँ तो अच्छे लोग रहते होंगे। तुम जगह देखते हो, तुम नाम देखते हो, तुम रूप देखते हो, तुम भेद देखते हो, भीतर क्या है? उसको नहीं देख सकते हो। उसको नहीं पहिचान पाओगे। इसलिए जो संत होते हैं, किसी मत के नहीं होते, धर्म के नहीं होते, किसी सम्प्रदाय के नहीं होते, किसी पंथ के नहीं होते। उन की जब कृपा होगी तो उनको तुम पूजोगे, लेकिन पूजने के लिए बात यही है, वहाँ तुम्हारे दिमांग में जो बैठा हुआ है, उसे बीच में मत लाना। अगर तुम्हारा दिमांग बीच में आ गया, तो तुम्हारी जिन्दगी का बहुत बड़ा खजाना था, उसे अपने आप खो दिया। फिर पता नहीं तुमको कितने जन्मों तक जुटाना पड़े, बात समझने की है, बात तपिस की है।


कृष्ण कहते हैं,"कपड़े उतारे हुए हो तो आ जाओ।'' लेकिन ये कपड़े दिमांग के होते हैं। दिमांग के कपड़े क्या हैं? वेदांत की भाषा में इसको अध्यास कहते हैं, शरीर का अध्यास। पतंजली इसको प्रत्यय या क्लेश भी कहती है। बात प्रत्यय की है। मानों ५ तरह के कपड़े हैं दिमांग में, या अगर बीमारी की कहो तो डॉक्टर से ५ तरह के रोग हैं। विपर्यय पहली बीमारी, पहला कपड़ा है। विपर्यय कहते हैं- उल्टी buddhi विपरीत बु(,ि उल्टी सोच। उल्टी सोच की बजह क्या होती है, वो अब जानना जरूरी है।

Thursday, November 11, 2010

बर्फ ओढ़ कर आग की तपिश नहीं मिलेगी........



लेकिन गर्मी कब मिलेगी? जब हम सामान्य रूप में जाऐंगे। आग के पास जाऐं और बर्फ ओढ़ कर बैठ जाऐं तो आग की तपिश कहाँ से मिलेगी? नहीं मिलेगी। जो आग की ताप है, टेम्प्रेचर है, वो बर्फ से ठण्ड़ा हो जाता है, बेजान हो जाता है। तुम बर्फ की सिल्ली लेकर गये और आग के पास बैठ गए तो कहेंगे कि आग ने तो कुछ नहीं किया हम तो ठण्डे ही रहे। ऐसे ही तुम किसी सन्त के पास में गए, किसी महापुरूष के पास में गए वो कोई भी हो सकते हैं, उनका कोई सम्प्रदाय नहीं होता, मजहब नहीं होता, कोई मत नहीं होता, कोई भेष नहीं होता कोई देश नहीं होता।


कोई ये कहे साधु तो गेरुए में ही मिलेंगे, नहीं, पेंट-सर्ट में भी रह सकता है, ट्रैक सूट में भी रह सकता है, सफारी सूट में भी रह सकता है, सलवार सूट में भी रह सकता है, नंगा भी रह सकता है, पागल भी रह सकता है। कलारी पर भी मिल सकता है, कोठे पर भी मिल सकता है। तुमने कथा सुनी होगी कि कोठे पर कोई सन्त रहता था, उसको वैश्या कहते थे लोग। लोगों की निगाहें उसी जगह पर ही होती हैं, भीतर नहीं होती, कोठे पर रहती थीं। वैश्याओं में रहती थी, वैश्या नहीं थी, कोठे वाली नहीं थी। उसके भीतर कोई कपड़ा नहीं था, मन पर कोई कवर नहीं था, कुछ नहीं था। जैसे तुम किसी शीशे के सामने हरा फूल रख दो, पत्ता रखोगे तो तुम कहोगे, "शीशा हरा है।'' शीशा हरा नहीं है, जो शीशे के पास में जो हरा पत्ता रखा हुआ है, हरा कपड़ा रखा हुआ है उसका हरा रंग है, शीशे का हरा रंग नहीं है। जैसे कोई संत कोठे पर रहता है तो वो कोठे वाले, कोठे वाले हैं। संत कोठे वालों में से नहीं हैं। उसमें उसका कोई भी रंग रूप, कोई भी लक्षण अवस्था, दोष, कुछ भी नहीं है।

Sunday, November 7, 2010

Who is Rudra?



Parma Bhagawat Divya Rudra is a divine personality whose dynamic philosophy endeares Him to masses wherever he goes. The good news is that he seldom stays at one place thus his mobility is a boon for the people belonging to different places where he goes to bless them with his divine presence and preachings.
His mobility is something visible to ones physical eyes but the equipoise and stillness within Him are seen only by His observant disciples who see Him with the eyes of ‘love’ or ‘gyan’.
He took his bodily form on 19th May 1958 at the Holy land of Braj in India. He took birth to continue His spiritual journey and to spread ight and peace. This became evident during His childhood only. When He was just six He came in touch with a saint to whom He used to go to offer his service. That saint used to say,”Bako bai mai hi mil jaego” (Everything has come out of Infinity and will return to Infinity). These mysterious words set Him on a quest for the Truth. That saint also made Him vow never to marry and never to enter a job. One day that holy saint left Him and Maharaj ji could never see him again but He always kept His vows. He has always been a thoughtful person having a keen insight into the innermost chambers not only of His divine self but also of the people around Him. This is what makes Shri Rudra, an Ahwan Akhara saint, a true Guru for a worthy seeker.
It is literally impossible to limit his teachings in words but He himself has termed that all that he says is aimed at teaching His humble disciples to learn the ‘Art of Dying’. Now, it may seem curious to some but here is a subtle message in it- if you remember that you have to die one day, you will know how petty the world and the worldly wealth are and this will certainly reap within you the divine fruit of vairagya, giving you peace of heart and mind and eventually letting you die in perfect peace remembering Him alone and attaining salvation.
This is just one gem of wisdom that comes from Him and He keeps showering so many everyday in His spiritual discourses, which appeal not only to heart but also to mind and intellect of the listeners, whom he lovingly calls ‘Shravaks’. We can only pray to the Holy Lord that His divine messages may benefit one and all. May all be influenced by the divine teachings of Guru and remain in the secure sphere of His pure thoughts forever………..

Tuesday, November 2, 2010

ख्वाब में भी बताते हैं

कैसे सुधरोगे? तुम तो बेकार हो बिल्कुल। इसलिए अपने दिमांग को बीच में मत लाना, कभी कोई महापुरूष आऐ तो अपने आप को खतम कर लेना। ऐसा नहीं कर सकते तो कम से कम-कम से कम फॉलो अनुसरण करना, पीछे चलना। वो क्या कहते हैं, समझ में नहीं आए तो चरण पकड़ लेना विनती करना, वो तुम्हें बता देंगे। और वो तुम्हें जुवान से नहीं बताऐंगे, कई तरीके से बताऐंगे-वो आँखों से भी बताते हैं, इशारों से भी बताते हैं, सोते हुए भी बताते हैं, बैठे हुए भी बताते हैं, ख्वाब में भी बताते हैं, नजदीक से भी बताते हैं, बहुत दूर से भी बताते हैं, उनकी हर अदा हमारे लिए शिक्षा होती है, अगर मन उसका अनुसरण कर सके, अगर उनको फॉलो कर सके। ये तुम्हारे लिए बहुत सकून की चीज होती है, और अगर तुम ऐसा कर सके और किसी महापुरूष की चरण की धूल भी मिल गयी तो तुम्हारे जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो जाऐगा, क्योंकि आग के पास जाते हैं तो अपने आप गर्मी मिलती है, बात सही है।